Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/६९ आभूषणों का लोभ जागा, उससे रहा नहीं गया, उसने हाथ से इशारा करके— “यमपाल घर में ही छुपा है"- ऐसा सिपाहियों को समझा दिया।
सिपाहियों को क्रोध आया और वे यमपाल को पकड़ कर उसे जबरदस्ती वध स्थान पर ले गये और कहा - " तू इस राजकुमार को मार और उसके आभूषणों को ले जा ।" - ऐसी राजा की आज्ञा है। यमपाल ने कहा- “आज मैं उसे नहीं मारूँगा ।"
अनपढ़ सिपाही यमपाल की भावना समझ नहीं सके और उसे जोर से धमका कर कहा - " यह राजकुमार गुनहगार है और राजा की आज्ञा है, इसलिए तू इसे मार । यदि राजा की आज्ञा नहीं मानेगा तो तू भी उसके साथ मरेगा ।"
यमपाल ने निर्भयता से उत्तर दिया- “चाहे जो हो जाये, परन्तु आज मुझसे राजकुमार मारा नहीं जा सकता । "
इसलिए सिपाही उस यमपाल को पकड़ कर राजा के पास ले गये और कहा - "महाराज ! यह चाण्डाल राजकुमार को आपका पुत्र समझ कर मारता नहीं है और राजाज्ञा को भंग कर रहा है ।"
राजा ने पूछा- “तू राजपुत्र को मारता क्यों नहीं है ? यह मेरी आज्ञा है और तेरा तो फाँसी देने का धंधा है । इसके अलावा आज राजकुमार को फाँसी देने पर लाखों की कीमत के आभूषणों का तुझे लाभ होने वाला है । ऐसा होने पर भी तू आज क्यों मेरी आज्ञा का पालन नहीं कर रहा ?"
चाण्डाल ने विनय पूर्वक कहा - "महाराज ! मेरी बात सुनिये ! आज चतुर्दशी है और मैं आज के दिन किसी भी जीव का घात नहीं करूँगा- ऐसी मेरी प्रतिज्ञा है । प्राण भले ही चले जायें, फिर भी मैं अपनी प्रतिज्ञा का पालन करूँगा, इसलिए आज मैं किसी जीव का घात नहीं करूँगा । तथा हे महाराज ! आज तो नन्दीश्वर के अष्टाह्निका