Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
View full book text
________________
जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/७० महापर्व का अन्तिम महान दिवस है, तब मैं हिंसा का पाप क्यों करूँ ?"
___ अब राजा का कुतूहल जाग उठा, उन्होंने चाण्डाल से एक साथ अनेक प्रश्न पूछे- “हे भाई ! तूने चतुर्दशी के दिन किसी भी जीव को नहीं मारने की प्रतिज्ञा किस कारण ली? कब ली? किससे ली ?"
उस पर यमपाल ने कहा- “महाराज ! इसके पीछे मेरी एक छोटी-सी कहानी है, उसे सुनिये- एक बार मुझे एक भयंकर साँप ने काटा और उसके जहर से मैं मूर्छित हो गया, परन्तु मेरे स्त्री-पुत्रादि । कुटुम्बी जनों ने तो मुझे मरा हुआ समझ कर श्मशान में फेंक दिया। दैव योग से वहाँ सर्वोषधि ऋद्धि के धारक एक मुनिराज आये और उनके शरीर से स्पर्शित हवा मेरे शरीर को लगते ही, शुभ कर्म के उदय से मेरी मूर्छा दूर हो गई । मेरा जहर उतर गया और मैं मरा नहीं, तत्काल उठ कर खड़ा हो गया ।
~
-
-
।
"
kama
JU
अहो, उन मुनिराज की वीतरागता और उनके प्रभाव की क्या बात ? बस ! उसी समय उन परम उपकारी मुनिराज के पास मैंने व्रत लिया कि चतुर्दशी के दिन मैं किसी भी जीव की हिंसा नहीं करूँगा।