Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 57
________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/५५ कुछ समय पश्चात् विद्याधर दिवाकर राजा की पत्नि को स्वयं का पुत्र हुआ। “अपने इस पुत्र को राज्य मिले" - ऐसी इच्छा से उस स्त्री को वज्रकुमार के प्रति द्वेष होने लगा। एक बार तो वह यहाँ तक कह गई - “अरे यह किसका पुत्र है ? जो यहाँ आकर हमें परेशान कर रहा है।" ____ इस बात को सुनते ही वज्रकुमार का मन उदास हो गया। उसे ज्ञात हुआ कि उसके माता-पिता कोई और हैं। तब विद्याधर से उसने सम्पूर्ण हकीकत जान ली, तब उसे मालूम हुआ कि उसके पिता दीक्षा लेकर मुनि हो गये हैं। तुरन्त ही वह विमान में बैठ कर उन मुनिराज की खोज में निकल पड़ा। ___एक दिन जब वज्रकुमार का विमान एक पर्वत के ऊपर से जा रहा था तो वहाँ उसने पर्वत की चाटी पर एक मुनिराज को ध्यान-साधना करते हुए देखा। उसने अपना विमान वहाँ उतारा तो देखता है कि वे सोमदत्त मुनिराज ही हैं। ध्यान में वराजमान सोमदत्त मुनिराज को देख कर वह बहुत प्रसन्न हुआ। इस विचित्र दुःखमय संसार के प्रति उसे वैराग्य हुआ। उसके मन में विचार आया कि अपने पिता से वारसा – हक्क में मुनि दीक्षा माँगनी चाहिये। ____ वज्रकुमार ने परम भक्ति से मुनिराज को वन्दन किया और कहा - "हे पूज्य देव मैं इस दुःखरूप संसार से घबराया हूँ। मैं जान गया हूँ कि इस संसार में आत्मा के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं है। मैं सच्चे सुख की प्राप्ति करना चाहता हूँ, इसलिए आप मुझे मुनि-दीक्षा दीजिये।" सोमदत्त मुनि ने उसकी परीक्षा करने के पहले तो उसे दीक्षा न लेने के लिए बहुत समझाया, परन्तु वज्रकुमार ने अपना दृढ़ शाखा निश्चय किया था, उसे देखकर और उसे निकटभव्य जानकर मुनिराज ने उसे मुनि-दीक्षा दे दी।

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