Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/५६ निर्ग्रन्थ वीतरागी साधु बन कर वे आत्मा के ज्ञान-ध्यान में रहने लगे । धर्म की प्रभावना करते हुए वे देश-विदेश में विहार करने निकले। एक बार उनके प्रताप से मथुरा नगरी में धर्म प्रभावना का एक अनोखा प्रसंग बना ।
[वहाँ क्या हुआ? यह जानने के लिए अपनी कहानी को मथुरा नगरी में ले जाना चाहिये ।]
मथुरा नगरी में एक गरीब अनाथ लड़की जूठन खाकर पेट भरती थी, उसे देख कर एक अवधिज्ञानी मुनि बोले- “देखो, कर्म की । विचित्रता! यह लड़की कुछ वर्षों पश्चात् राजा की पटरानी बनेगी।"
मुनि की यह बात एक बौद्ध भिक्षुक ने सुनी और वे उसे अपने ' मठ में ले गये । इस लड़की का नाम बुद्धदासी रख कर वहीं उसका लालन-पालन होने लगा, उसे बौद्ध धर्म के संस्कार मिले ।
आगे चल कर जब वह युवा हुई, तब उसका अत्यन्त सुन्दर रूप देखकर राजा मोहित हो गया और उसने उससे शादी करने की माँग की, परन्तु इस राजा की उर्मिला नाम की रानी थी, जो जिनधर्म का पालन करती थी।
तब मठ के लोगों ने कहा- “राजा स्वयं बौद्ध धर्म स्वीकार करें और बुद्धदासी को पटरानी बनायें । इस शर्त पर ही हम शादी करने की स्वीकृति देंगे ।"
कामान्ध राजा ने बिना सोचे-समझे ही यह बात स्वीकार कर ली। अरे ! धिक्कार हो इन पंचेन्द्रियों के विषयों को । कामान्ध जीव सच्चे धर्म से भी भ्रष्ट हो जाते हैं । पश्चात् एक दिन बुद्धदासी राजा की पटरानी बन गई । वह बौद्ध धर्म का बहुत प्रचार करने लगी ।
.. इधर उर्मिला रानी जिनधर्म की परम भक्त थी । उसने हर साल की तरह इस साल भी अष्टाह्निका पर्व में जिनेन्द्र भगवान की बहुत