Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 17
________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/१५ नीचे लगे भालों को देखकर उसे डर लगता था और मन्त्र में शंका आती थी कि कदाचित् मन्त्र सच्चा नहीं हुआ और मैं नीचे गिर पड़ा तो मेरा शरीर छिद जायेगा । ऐसी शंका से वह नीचे उतर जाता। थोड़ी देर पश्चात् उसे ऐसा विचार आता कि सेठजी ने जो कहा, वह सच्चा होगा तो? अत: फिर सीके में जा बैठता । ... . काली MAIN इस प्रकार वह बारम्बार सीके से चढ़ता-उतरता, लेकिन वह नि:शंक होकर उस रस्सी को काट नहीं सका । जिस प्रकार चैतन्यभाव की नि:शंकता बिना शुद्ध-अशुद्ध के विकल्प में झूलता हुआ जीव

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