Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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उपगूहन अंग में प्रसिद्ध जिनभक्त सेठ की कहानी स्वयं शद्ध जो सत्यमार्ग है, उत्तम सुख देने वाला। अज्ञानी असमर्थ मनुज-कृत, उसकी हो निन्दा माला॥ उसे तोड़ कर दूर फेंकना, 'उपगूहन' है पंचम अंग। इसे पाल निर्मल यश पाया, सेठ 'जिनेन्द्रभक्त' सुख अंग।।
पादलिप्त नगर में एक सेठ रहता था, वह महान जिनभक्त था, सम्यक्त्व का धारक था और धर्मात्माओं के गुणों की वृद्धि तथा दोषों का उपगूहन करने के लिए प्रसिद्ध था । पुण्य-प्रताप से वह बहुत वैभव-सम्पन्न था, उसका सात मंजिला महल था । वहाँ सबसे ऊपर है के भाग में उसने एक अद्भुत चैत्यालय बनाया था । उसमें बहुमूल्य रत्न से बनाई हुई भगवान पार्श्वनाथ की मनोहर मूर्ति थी, उसके ऊपर रत्न जड़ित तीन छत्र थे, उनमें एक नीलम रत्न बहुत ही कीमती था, जो अन्धेरे में भी जगमगाता था। - उस समय सौराष्ट्र के पाटलीपुत्र नगर का राजकुमार सुवीर कुसंगति में दुराचारी तथा चोर हो गया था । वह एक बार सेठ के जिन-मन्दिर में गया । वहाँ उसका मन ललचाया- भगवान की भक्ति के कारण नहीं, बल्कि कीमती नीलम रत्न की चोरी करने के भाव से।
उसने चोरों की सभा में घोषणा की- “जो कोई उस जिनभक्त सेठ के महल से कीमती नीलम रत्न लेकर आयेगा, उसे बड़ा इनाम मिलेगा ।" .. सूर्य नामक एक चोर उसके लिए तैयार हो गया, उसने कहा. "अरे, इन्द्र के मुकुट में लगा हुआ रत्न भी मैं क्षण भर में लाकर दे सकता हूँ, तो यह कौनसी बड़ी बात है ?
लेकिन, महल से उस रत्न की चोरी करना कोई सरल बात