Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 32
________________ . जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/३० मिथ्यामत के देवादिक बाहर से देखने में कितने भी सुन्दर दिखते हों, ब्रह्मा, विष्णु या शंकर, भले कोई भी हों परन्तु धर्मी जीव उनके प्रति आकर्षित नहीं होते । ...... मथुरा की राजरानी रेवतीदेवी अभी सम्यक्त्व की धारक हैं, जिनधर्म की श्रद्धा में वह बहुत ही दृढ़ हैं, उन्हें धर्मवृद्धि का आशीर्वाद कहना तथा वहाँ विराजमान सुरत मुनि को, जिनका चित्त रत्नत्रय में रत है- उन्हें वात्सल्य पूर्वक नमस्कार कहना ।" HAR इस प्रकार आचार्यदेव ने सुरत मुनिराज को तथा रेवती रानी के लिए सन्देश कहा, परन्तु भव्यसेन मुनि को तो याद भी नहीं किया। इस पर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ, फिर भी आचार्य महाराज को याद दिलाने के उद्देश्य से पूछा-“क्या दूसरे किसी को कुछ कहना है?" परन्तु आचार्यदेव ने इस पर विशेष कुछ नहीं कहा । इससे चन्द्र राजा को ऐसा लगा-“क्या आचार्यदेव भव्यसेन मुनि को भूल गये हैं?.......नहीं, नहीं, वे तो भूलेंगे नहीं, वे तो विशेष ज्ञान के धारक हैं, इसलिए उनकी इस आज्ञा में अवश्य कोई रहस्य होगा। ठीक है, जो होगा वह प्रत्यक्ष दिखेगा ।" मन ही मन में ऐसा समाधान करके चन्द्र राजा ने आचार्यदेव के चरणों में नमस्कार किया और वे मथुरा की तरफ निकल पड़े।

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