Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 13
________________ श्रावक की धर्मसाधना ___ सकलकीर्ति श्रावकचार : अध्याय ५ से १० सम्यग्दर्शन के आठ अंग ... (आठ अंगों में प्रसिद्ध आठ कथायें) सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा को अपनी शुद्धात्मा की अनुभूति सहित आठ अंगों का पालन होता है। सकलकीर्ति श्रावकाचार एवं प्रथमानुयोग के आधार पर ब्र. हरिभाई द्वारा संकलित उन कथाओं को यहाँ दिया जा रहा है। उनके प्रसिद्ध चरित्र नायकों के नाम इसप्रकार हैं अंजन निरंजन हुए जिनने, नहीं शंका चित धरी। प्रसिद्ध अनंतमती सती ने, विषय-आशा परिहरी॥ ... सज्जन उदायन नृपति वर ने, ग्लानि जीती भाव से। सत्-असत् का किया निर्णय, रेवती ने चाव से।। जिनभक्तजी ने चोर का वह, महा दूषण ढक दिया। जय वारिषेण मुनीश जिनने, चपलचित को थिर किया।। सु विष्णुकुमार कृपालु मुनि ने, संघ की रक्षा करी। जय वज्रमुनि जयवन्त तुमसे, धर्म महिमा विस्तरी॥ रत्नत्रय की पूजा के अन्तर्गत सम्यग्दर्शन पूजा की जयमाला के अन्त में आता है कि हे जीवो! सम्यग्दर्शन के आठ गुणों की आराधना से सिद्धदशा के आठ महागुण प्राप्त करो... जिससे संसार में पुनः अवतरण न हो । कहा भी है गुण आठ सौं गुण आठ लहिकैं, इहाँ फेर न आवना। . ___सिद्धदशा की पहली सीढ़ी सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान या चारित्र भी निष्फल हैं; इसलिए हे भव्यजीवो! बहुमानपूर्वक इसकी आराधना करो।

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