Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 11
________________ भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में बार-बार कहा है समाहिकारएणं तमेव समाहिं पडिलब्भइ । दूसरों को समाधि और शान्ति पहुंचाने वाला स्वयं भी समाधि और शान्ति का भागी होता है। इसलिए तुम्हारा जीवन निपट एकांगी नहीं; सामाजिक है, पर-सापेक्ष है। दूसरों को जीने दो, वे तुम्हें जीने देंगे। __ इस प्रकार कोई किसी के जीवन में बाधक नहीं बनेगा। जीवन-सन्देश का बहुआयामी रूप जिस तरह जीवन विराट है, उसके अनेक आयाम हैं, अनेक विधाएँ हैं, उसी प्रकार जीवन-सन्देश भी बहुआयामी है। इसमें उन अनेक गुणों का समामेलन है, संयोजन है, समुच्चय है, जो सफल और सकल (संपूर्ण) जीवन के लिए आवश्यक हैं। __ ये गुण आध्यात्मिक भी हैं, नैतिक भी, तथा मानसिक, चारित्रिक, सामाजिकता-परक, वैयक्तिक आदि रूप में इन गुणों के अनेक प्रकार

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