Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 61
________________ ५९ इसे एक हिन्दी कवि ने निम्न दोहे में कहा जूआखेलन मांसमद वेश्यागमन शिकार। चोरी पररमणीरमण, सातों व्यसन निवार।। इनमें से एक-एक व्यसन भी व्यक्ति की दुर्दशा करने के लिए काफी है और जिसे सातों व्यसन लग जायं, उसकी दुर्गति की तो कल्पना ही की जा सकती है। पहला व्यसन है जूआ। यह ऐसा बेमुरब्बत है कि किसी का भी न हुआ। जिसने भी जूआ खेला वही बरबाद हुआ, वन-वन भटका और घोर कष्टों में घिरा। प्राचीन काल के उदाहरणों में राजा नल और धर्मराज युधिष्ठिर का नाम प्रसिद्ध है। महाभारत के महाविनाशकारी युद्ध का कारण भी द्यूत-क्रीड़ा ही थी। आधुनिक युग में सट्टा, अंक फीचर, ताश के पत्तों से खेला जाने वाला आदि जूए के अनेक प्रकार प्रचलित है। प्रजातंत्र युग का नया जूआ है कि अमुकPage Navigation
1 ... 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68