Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 60
________________ ५८ खिले हुए हैं। जैसे ही व्यक्ति उन्हें लेने जाता है, वह कीचड़ में फँस जाता है और नो हव्वाए, नो पाराए-न इधर का रहता है और न उधर का। वह व्यसन रूपी कीचड़ में ही फँसकर रह जाता है। व्यसन सुखी जीवन के वे पिस्सू हैं जो प्लेग की तरह जीवन को जकड़ लेते हैं। और तभी पीछा छोड़ते हैं जब मानव पूरी तरह बरबाद हो जाता है, शरीर जर्जर होकर शमशान घाट पहुँच जाता है। व्यसन, व्यक्ति की वे बुरी आदतें हैं, जिनको वह शौक के रूप में शुरू करता है और यह शौक फिर उसके जीवन में इतना प्रभावी हो जाता है कि मानव को चारों ओर शोक ही शोक दिखाई पड़ता है। यों तो जितनी भी बुरी आदतें हैं, वे सभी व्यसन हैं। इस प्रकार व्यसनों की संख्या अत्यधिक है किन्तु इनमें सात प्रमुख हैं जूय मज्ज वेसा पारद्धि चोर परयार। दुग्गइगमणस्सेदाणि हेउभूदाणि पावाणि।।

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