Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 65
________________ इसी प्रकार वेश्यागमन और परस्त्रीसेवन भी अब्रह्म का ही रूप है। शराब आदि सभी दुर्व्यसन चोरी आदि पापों के लिए प्रेरित करते हैं। इसी कारण जैन धर्म के जीवन-सन्देश में व्यसन- मुक्त जीवन जीने का सन्देश दिया गया है। उपसंहार जैन धर्म यद्यपि मुख्य रूप से मोक्षवादी दर्शन है, इसका लक्ष्य भी . आत्म-शुद्धि की सर्वोत्कृष्ट दशा मुक्ति ही है तथा अहिंसा अथवा जीवमात्र का संरक्षण-उसे अभय करना, इस धर्म के आचार-विचार का मूल आधार है किन्तु इसका दृष्टिकोण-आयाम अत्यधिक विस्तृत है, जीव की-प्राणी मात्र की छोटी से छोटी प्रवृत्ति, सूक्ष्म से सूक्ष्म विचारकण भी इस धर्म के विस्तृत आयाम के वितान में सनिहित हो जाते हैं। इसका सर्वप्रथम और सर्वश्रेष्ठ जीवन सिद्धान्त है- जीओ और जीने दो तथा इसPage Navigation
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