Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 66
________________ ६४ सिद्धान्त में समस्त जीव और यहाँ तक कि अजीव के भी पारस्परिक सहयोग की प्रेरणा अन्तर्निहित है। यह समूचा विश्व ही सहयोग के आधार पर संचालित है। - इस धर्म के जीवन सन्देशों में प्रदूषण से मुक्ति के साथ नैतिक और धार्मिक जीवन के उपाय भी बताये गये हैं, शरीर की स्वस्थता तथा स्फूर्तमयता के लिए ऊनोदरी आदि तप का विधान किया है तथा वैचारिक संघर्ष को समाप्त करने के लिए अनाग्रह और अनेकान्त के सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं तो सामाजिक सुव्यवस्था से लिए अपरिग्रह का महत्व बताया गया है । इस प्रकार जैन धर्म के जीवन - सन्देश मानव मात्र को सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करने में सक्षम और समर्थ है। प्रत्येक मानव इन जीवन सन्देशों का पालन करके अपने जीवन को सभी प्रकार से सुखी बना सकता I

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