Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 68
________________ మీద 0 बर्फ के टुकड़े की तरह यह जीवन प्रतिक्षण गलता जा रहा है / पूरब की धूप की तरह यह जीवन प्रतिपल पश्चिम की ओर ढलता जा रहा है / मानव ! सावधान हो ! बर्फ के गलेने से पहले, दिन के ढलने से पहले उसका सदुपयोग कर लो / 0 तुम्हारे विचारों की तस्वीर भले ही सुन्दर है, मनमोहक है, किन्तु जब तक वह आचार के फ्रेम में नहीं मढ़ी जा सकती, तब तक जीवन रूपी गृह की शोभा कैसे बढ़ायेगी ? ___विचारों की तस्वीर को आचार के फ्रेम में मढ़वा दो ! तस्वीर भी चमक उठेगी और घर भी ! - उपाचार्य देवेन्द्रमुनि प्रकाशकःश्रीतारक गुरुजैन ग्रन्थालय उदयपुर

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