Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 59
________________ ५७. शक्तियाँ सदा अवस्थित रहती हैं। वह चाहे तभी इन शक्तियों को अपने ही निजी पुरुषार्थ से, बिना किसी अन्य व्यक्ति या देवी-देव की सहायता लिए, अभिव्यक्त कर सकता है, परमात्मा बन सकता है। जीव का यह स्वातंत्र्य जैन धर्म की अपनी निजी विशेषता है; जिसकी झलक भी अन्यत्र नहीं मिलती। पुरुषार्थ की प्रेरणा, कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति और आत्मा की सार्वभौम स्वतंत्रता- जैन धर्म का यह मौलिक जीवन-सन्देश है। . .. व्यसनमुक्त जीवन जैन धर्म का व्यसन-मुक्त जीवन नाम का जीवन- सन्देश व्यावहारिक और आध्यात्मिक सुखी जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण है। जिस व्यक्ति में किसी प्रकार का व्यसन नहीं होता, वह सुखी रहता है। रोग, शोक, चिन्ता, दुख, दरिद्रता आदि उसके पास भी नहीं आते। व्यसनों की तुलना उन कीचड़ भरे गड्ढों से की जा सकती है, जिनके ऊपर मखमली घास और विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे, सुन्दर सुमन

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