Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 41
________________ ३९ उदाहरणार्थ - राम अपने पिता की अपेक्षा से पुत्र है और अपने पुत्र की अपेक्षा से पिता है, बहन की अपेक्षा से भाई है और पत्नी की अपेक्षा से पति भी है । इस प्रकार विभिन्न अपेक्षाओं से एक ही राम नाम के व्यक्ति में परस्पर विरोधी जैसे दिखाई देने वाले रूप समाविष्ट हैं। उन रूपों को समझना और मानना ही स्याद्वाद है । स्याद्वाद में दो शब्द हैं- स्याद् और वाद । स्याद् का अर्थ है - कथंचित्, किसी अपेक्षा से, किसी दृष्टिकोण से और वाद का अभिप्राय है कथन का प्रकार अथवा शैली । यद्यपि बहुत-से मनीषियों और विचारकों ने स्याद्वाद की कटु आलोचना की है; किन्तु उनकी इस आलोचना का कारण उनका दृष्टिभ्रम ही है, उन्होंने इस सिद्धान्त को समझे बिना ही इस पर अपने विचार प्रगट करने का साहस किया है । स्याद्वाद चाहे अपने इस नाम से न सही, किन्तु, जगत व्यवहार का निर्धारण करने वाला है, इसी के अनुसार संसार का सारा व्यापार

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