Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 45
________________ ४३ 'तो कौन छोटा, कौन बड़ा, कौन उंच्च और कौन तुच्छ ? इस प्रकार समत्व भाव वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को मूर्तिमन्त रूप देता है। न सिर्फ मनुष्य तक ही इसकी दृष्टि सीमित है अपितु प्राणीमात्र ही इसकी परिधि में आ जाता है । समत्व की भावना का जीवन में बहुत महत्व है । जब कोई बड़ा नहीं है तो अभिमान कैसा ? और तुच्छ नहीं है तो हीनता का अवकाश ही कहाँ है ? इस प्रकार यह अभिमान रूपी दुर्गुण से मनुष्य को बचाता है तो हीनत्व भाव भी उसमें नहीं आने देता, हीन ग्रन्थि से भी बचाता है। इन दोनों अतियों से सुरक्षित करके वह व्यक्ति को अपने अक्ष - अपने केन्द्र और अपने सद्गुणों में लीन होने का तथा उन्हें बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करता है। ऐसा व्यक्ति, जिसके मन में ममत्व अवस्थिति पा चुका हो, वह व्यक्ति ईर्ष्या, द्वेष, कलह आदि दुर्गुणों से दूर रहता है। भेद की भावना उसके हृदय के किसी कौने में भी नहीं

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