Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 51
________________ ४९ जो लोग ईश्वर अथवा धर्मराज को न्यायकर्ता और दण्डाधिकारी के रूप में स्वीकार करते हैं, उनमें यह कहावत प्रचलित है कि ईश्वर को क्या जबाब देंगे अथवा खुदा को क्या मुँह दिखायेंगे ? एक कवि के शब्दों में - सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है। न रिश्वत है, सिफारिश है, न कोई बहाना है।। इस मनःस्थिति के कारण कर्म-सिद्धान्त को थोड़ा भी जानने वाले और उस पर अल्पतम विश्वास रखने वाले लोगों ने नैतिकता, सदाचार और धर्म के मूल्य को समझा तथा अपने जीवन को नैतिक बनाने का प्रयत्न किया। कर्म सिद्धान्त से हमारा जीवन पुरुषार्थी बनता है और नैतिक मर्यादाओं का पालन करने में स्थिर रहता है। इस प्रकार कर्म सिद्धान्त मानव को नैतिक जीवन व्यतीत करने की एक प्रबल प्रेरणा प्रदान करता है। सुख-दुःख में तितिक्षा ___ कर्म-सिद्धान्त के ज्ञान का दूसरा बड़ा

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