Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 56
________________ मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। . इसी बात को एक अध्यात्मवादी मनीषी ने इन शब्दों में कहा हैरे, जानकर बंधन स्वभाव, स्वभाव जान जु आत्मा का। जो बन्ध में ही विरत होवे, कर्म मोक्ष करे अहा ॥ जैन दर्शन के जीवन सन्देश के रूप में कर्म सिद्धान्त अथवा कर्मवाद की यही विलक्षण विशेषता है कि यह व्यावहारिक जीवन में मानव को तितिक्षा, धैर्य, समसुख-दुख-भाव, समत्व, पुरुषार्थ आदि का सबल प्रेरक है; उच्च भाव और हीनभाव से मानव को दूर रखता है; तथा आत्मा को उन्नति के सोपानों पर चढ़ने के लिए सहायक की भूमिका निभाता है एवं मुक्ति प्राप्ति में- आत्मा को सर्वतंत्र स्वतंत्र होने के पथ को प्रशस्त करने में निमित्तभूत बनता है। आत्म-स्वातंत्र्य आत्म-स्वातंत्र्य अथवा जीव की स्वतंत्रता, अनन्त सामर्थ्य- यह जैन धर्म का एक निराला जीवन-सन्देश है।

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