Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 43
________________ के समक्ष प्रस्तुत कर भी दिये हैं। सिद्धान्त रूप में वस्तु के अन्दर सन्निहित ऐसे परस्पर विरोधी गुणों को स्याद्वाद द्वारा ही समझा तथा विवेचित किया जा सकता है। विद्वानों ने स्याद्वाद को बहुत ही जटिल सिद्धान्त कहा है किन्तु यदि समझने का प्रयास किया जाय तो यह अति सरल सिद्धान्त है। इसे छोटा बच्चा भी समझ सकता है। __एक जैन साधु से किसी बालक ने जिज्ञासा की-महाराज! आपका स्याद्वाद सिद्धान्त क्या है? साधुजी ने अपनी कनिष्ठिका और अनामिका अँगुली दिखाकर पूछा-इनमें कौन सी अँगुली बड़ी है? बालक ने अनामिका बड़ी बताई। साधुजी ने अब अनामिका और मध्यमा अँगुली दिखाकर पूछा तो उसने अनामिका को छोटी बताया। साधुजी ने समझाया-वत्स! कनिष्ठिका की अपेक्षा अनामिका बड़ी है और मध्यमा की अपेक्षा छोटी, बस यही स्याद्वाद है।Page Navigation
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