Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 47
________________ ४५ किसी व्यक्ति को पीड़ित और दुखी देखकर उसके हृदय में करुणा का उद्रेक नहीं होता। वस्तुतः समत्व और कारुण्य सहचर हैं। जहाँ समत्व होगा वहाँ करुणा अवश्य होगी। करुणारहित समत्व तो सूखे ढूँठ के समान है, जिसके होने, न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। समत्वभावी व्यक्ति भी समाज में रहता है। वह समाज से सहयोग लेता है तो देता भी है। वह अन्य अभावग्रस्त, दुखी-पीड़ित-कष्टित प्राणियों मनुष्यों की यथाशक्ति सेवा-सहायता करता है। जिसने समत्व धारण कर लिया है, वह समाज के लिए और भी अधिक उपयोगी हो जाता है। समत्व को गीता में भी योग कहा हैसमत्वं योग उच्यते। लेकिन वहाँ समत्व से सिद्धि-असिद्धि, हानि-लाभ में हर्ष-शोक न करके केवल कर्म करने की प्रेरणा दी गई है। जबकि जैन धर्म द्वारा जीवन संदेश के रूप में समत्व करुणा-दया आदि कोमल भावों से समन्वित है। अतः जैन धर्म द्वारा प्रतिपादित

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