Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 37
________________ ३५ एवं कष्ट भोगने पड़ेंगे। यह विशिष्टता जैन धर्म की अपनी है। जहाँ अन्य धर्मों में आग्रह ही दिखाई देता है। वहाँ स्वर्गों के सुखभोग के प्रलोभन भी हैं और नरकों के कष्टों का भय भी। एक पश्चिमी विद्वान ने स्थिति को इस प्रकार स्पष्ट किया है___ "सभी धर्म-प्रचारक एक हाथ में ऊँची ध्वजा और दूसरे हाथ में कीचड़ से भरी बाल्टी लिये घूमते हैं और लोगों से कहते हैं-हमारे धर्म को स्वीकार कर लोगे तो स्वर्ग के सुख पाओगे अन्यथा नरक की कीचड़ में गिरना पड़ेगा। ___ लगभग सभी धर्म-प्रवर्तक और उपदेष्टाओं का एक ही वाक्य है-हे मानव! सभी अन्य धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ जा, मैं तेरे सारे पापों का नाश कर दूंगा। यह आग्रह के ही विभिन्न रूप हैं। किसी व्यक्ति को मीठी-मीठी, चिकनी-चुपड़ी बातों में फुसलाना, प्रलोभन देना, चमत्कार दिखाकर अपनी ओर आकर्षित करना, उसे प्रभावित

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