Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 23
________________ २१ को काटा जा रहा है, कृषि-योग्य भूमि को समाप्त किया जा रहा है, सिर्फ इसलिए कि अफसरों, नेताओं और सुविधाभोगी वर्ग के लिए विशाल और आलीशान बंगलों तथा कोठियों का निर्माण किया जा सके । लेकिन वनों की कटाई और कृषि-भूमि पर भवन-निर्माण का परिणाम रेगिस्तान के फैलाव में सहायक हो रहा है। साथ ही वनों के अभाव से वायु की अस्वच्छता भी बढ़ती जा रही है। जिस वृक्ष आदि वनस्पतिकाय के लिए जैन शास्त्रों ने हजारों वर्ष पूर्व ही कहा था कि इनकी शरीर रचना और मानव की शरीर रचना, वृक्षों की संवेदना और मानव की संवेदना बहुत कुछ मिलती-जुलती है। वृक्ष वनस्पति मानव जाति के लिए परम उपकारक सखा व मित्र तुल्य हैं। उनके लिए अब आज जब प्रदूषण की भयंकरता से मनुष्यों का दम घुटने लगा है तब वह नारा, दे रहा है वृक्ष धरा के भूषण हैं करते दूर प्रदूषण हैं इसी प्रकार जल के अनियमित उपयोग की

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