Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 34
________________ अन्य व्यक्तियों के जीवन में अभावग्रस्तता का कारण बनता है। परिणामस्वरूप समाज में विद्रोह, वर्ग संघर्ष, अराजकता की स्थिति निर्मित होती है और उस स्थिति में धनी अथवा परिग्रही व्यक्ति भी स्वयं को सुरक्षित नहीं समझ पाते। उनका वैभव ही उनके लिए चिन्ताओं का कारण बन जाता है। दूसरी ओर परिग्रह हिंसा का कारण भी बनता है और साथ ही भगवान महावीर द्वारा दिये गये जीवन-सन्देश 'जीओ और जीने दो की भावना के विपरीत मनःस्थिति निर्मित करता है। क्योंकि धन को एकत्र करने वाले परिग्रही व्यक्ति अन्य मनुष्यों के जीवन को सुखद बनाने में सहयोग नहीं कर पाते। . इसी कारण अपरिग्रह जैन धर्म-सिद्धान्त के अनुसार जीवन जीने की एक विशिष्ट पद्धति है। अनाग्रह अनाग्रह जैन धर्म का विशिष्ट जीवन दर्शन है। यह सैद्धान्तिक भी है और व्यावहारिक भी है तथा प्रयोगात्मक भी है।

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