Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 14
________________ १२ जीवन में चमक-दमक उत्पन्न करते हैं। सम्यग्ज्ञान का अभिप्राय है-सच्चा ज्ञान, किसी भी वस्तु का यथार्थ बोध, और उस ज्ञान पर दृढ़ विश्वास होना सम्यग्दर्शन है; तथा उस ओर प्रवृत्ति करना सम्यक्चारित्र है। एक व्यावहारिक उदाहरण लीजिएकिसी व्यक्ति को दिल्ली से बम्बई जाना है, वह शीघ्र पहुँचना चाहता है तो उसको शीघ्रगामी साधनों की तलाश करनी आवश्यक है, जान लिया कि प्लेन शीघ्र पहुँचायेगा, फिर उसका समय, सीट बुकिंग (रिजर्वेशन), साथ ही यह विश्वास कि यह सकुशल बम्बई पहुँचा देगा, और फिर उसमें बैठना-यह सभी क्रियाएँ शीघ्र बम्बई पहुँचने के लिए आवश्यक हैं। - इसी प्रकार व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र में, जीवन की हरेक गतिविधि में ज्ञान, विश्वास और तदनुकूल क्रिया-प्रवृत्ति का महत्व है। तीनों ही आवश्यक हैं-सफलता के लिए। कार्य की संपूर्णता के लिए। जीवन के किसी भी क्षेत्र में ज्ञान, विश्वासPage Navigation
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