Book Title: Jain Bhanu Pratham Bhag Author(s): Vallabhvijay Publisher: Jaswantrai Jaini View full book textPage 7
________________ पण्डिता बालब्रह्मचारिणी वगैरह पूंछड़ों को देख खूब हृष्टः पुष्ट हो रही है, जिसकी बाबत अंबाला शहर (पंजाब) निवासी ऋषिकेश शर्मा-इंढक-जैनरत्न-समाचार पत्रके-एडीटरने आर्यभूषण मैशीन प्रेस मेरठ में छपवाकर एक हैंडविल निकाला था, जिसकी नकल यह है: शिवप्रिया चरित्र * अपर नाम * (ढुंढक साधुवों की गुरुणी की पोल).. इस पुस्तक के अवलोकन करने से मान दग्धा पार्वती (द्वंढकणी) की विद्या, बुद्धि, विचार, संयम प्रमाद, ईर्षा, द्वेष, पण्डिताई, ब्रह्मचर्य, भली प्रकार प्रगट होजावेगा मूल्य प्रति पुस्तक १) उसी पार्वती ढूंढनी ने “ कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा" इस कहावत को सार्थक कर एक पोथी रची जिम को लाला मेहरचन्द, लछमनदास ने संवत् १९६२ में छपवाया, और नाम रख दिया "सत्यार्थ चन्द्रोदय जैन"॥ .. यद्यपि ऐसी पोथी (परमार्थ से थोथी) का उत्तर रूप खण्डन के लिये परिश्रम करना उचित नहीं, तथापि "शाठयंशठमतिकुर्यात" इस वाक्यानुसार तथा अतीव प्रेरणा से तपगच्छाचाये श्रीमद्विजयानन्द सूरि (प्रसिद्ध नाम श्री आत्मारा)जी के शिष्य प्रशिष्यविख्यात श्रीमान् श्रीमुनिवल्लभविजय जी महाराज ने उत्तर क खण्डन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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