Book Title: Jain Agam Prani kosha
Author(s): Virendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 25
________________ जैन आगम प्राणी कोश प्राणियों की मृत्यु होती हैं, उनमें सबसे ज्यादा उग्रविष रेगिस्तान की जलती हुई बालू से बचाए रखती है। बालू सर्प के दंश से होती हैं। कोबरा, करैत, शेषनाग, का तूफान आने पर यह अपनी नाक बंद कर लेता है। महानाग आदि सर्प उग्रविष वाले सर्पो की गणना में कानों और आंखों पर उगे लम्बे बालों के कारण इसके आते हैं। कान और आंख सुरक्षित रहते हैं। [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-जानवरों की दुनिया, बैक्ट्रियाई ऊंटों के दो कोहान होते हैं जबकि अरबी ऊंटों IndianReptiles, Snakes ofAustrailia, Snakes के एक ही कोहान होता है। रेगिस्तान में तेजी से चलने of Southern Africa) के कारण यह रेगिस्तान का जहाज भी कहलाता है। ऊंट को बहुत कम प्यास लगती है। कुछ लोग समझते हैं कि उट्ट [उष्ट्र] प्रज्ञा. 1/64 जम्बू. 2/35 अनु. 12, 16 इनके पेट में पानी एकत्रित करने के लिए कोई थैली या Camel-ऊंट विशेष अंग होता है। मगर ऊंट के शरीर में न कोई थैली होती है और न कोई विशेष अंग। गर्मी के कारण मनुष्य के शरीर में खून का दबाव बढ़ जाता है इसलिए उसे अधिक प्यास लगती है। मनुष्य की भांति गर्मी के कारण ऊंट के खून का दबाव नहीं बढ़ता इसलिए वह कई-कई दिनों तक पानी के बगैर रह सकता है। उद्द [उद्द] सू. 1/7/15 आकार-पूर्ण वयस्क ऊंट की ऊंचाई लगभग 8-11 Otter-ऊदबिलाव, जलमानुष। फीट तक। आकार-लगभग 60 से 100 से.मी. लम्बा बिल्ली की लक्षण-शरीर का रंग कत्थई-भूरा। पैर लम्बे एवं पूंछ शक्ल का प्राणी। वर छोटी। पीठ पर एक कूबड़-सा होता है। लक्षण-शरीर का ऊपरी हिस्सा भूरे रंग का होता है, विवरण-इनकी विश्व में अनेक प्रजातियां पाई जाती जिसमें कुछ कत्थई-स्लेटी रंग की झलक दिखाई पड़ती हैं। यह गर्म रेगिस्तानों में विशेष रूप से पाया जाता है। इसके बड़े बालों के नीचे घने बालों की तह होती है। कई दिनों तक बिना कुछ खाए पिए रह सकता है है। इसका कद छोटा और लम्बा होता है। सिर चपटा क्योंकि यह अपने कूबड़ में भोजन इकट्ठा कर लेता है। और चौड़ा। इसके पैर के पंजे बत्तखों के पंजों की भांति यह एक बार में 90 लीटर तक पानी पी सकता है। आपस में जुड़े रहते हैं। कागा ऊंट में गर्मी एवं उड़ती हुई बालू को सहन करने की विवरण-समुद्रों और नदियों में इसकी कई प्रजातियां विशेष क्षमता होती है। इसके पैरों में लगी गद्दी इसे पाई जाती हैं। यह जल और थल- दोनों स्थानों पर रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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