Book Title: Jain Agam Prani kosha
Author(s): Virendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 26
________________ 12 जैन आगम प्राणी कोश सकता है परन्तु अधिक समय जल में ही व्यतीत करता जबड़े बहुत मजबूत होते हैं। जिला है। यह जलीय स्थानों के किनारे बिल बनाकर रहता विवरण-इनकी सफेद, भूरी, काली आदि अनेक रंगों वाली अनेक प्रजातियां पायी जाती हैं। दीमकों की यह बहुत ही चालाक और फुर्तीला है, जो आसानी से बम्बियां कभी-कभी तीन मनुष्यों जितनी ऊंची होती हैं। पकड़ में नहीं आता, परन्त बचपन में पकड़े जाने पर लेकिन ठण्डी जलवायु वाले प्रदेशों में दीमक जमीन या इसे बड़ी आसानी से पालतू बनाया जा सकता है। चूहे लकड़ी के भीतर बिल बनाकर रहती हैं। दीमकें प्रायः से मिलती-जुलती-चूं-sssचूं-sss की तीखी आवाज लकड़ी खाती हैं। मेज, कुर्सियां और लकड़ी की अन्य करता है। चीजों को खा खा कर खोखला और कमजोर कर देती हैं। दीमकों की एक बाम्बी में एक राजा, एक रानी और उइंसग [उद्देशक] प्रज्ञा. 1/50 . हजारों लाखों मजदूर व सिपाही होते हैं। अण्डे देने का Bed Bug-खटमल। चात काम रानी दीमक करती है। [विवरण के लिए द्रष्टव्य-सचित्र विश्व कोश, जानवरों की दुनिया, फसल पीड़क कीट, Nature] उद्देहिया [उपदेहिका] प्रज्ञा. 1/50 उत्त. 36/137 Termite-दीमक देखें-उद्देसग उप्पाड़ [उत्पादय] प्रज्ञा. 1/50 AKind of White Ant-दीमक देखें-उद्देसग आकार–छोटा, चपटा एवं भूरे रंग का कीट। लक्षण-यह मानव के समीप बिस्तर आदि में रहता उप्पाय [उत्पाद] प्रज्ञा. 1/50 [पा.] है। इसका भोजन खून चूसना है। इसके पंख नहीं होते Termite. White Ant-दीमक देखें-उद्देसग विवरण-यह रात्रि में अपना भोजन प्राप्त करने के लिए निकलता है। दिन में बिस्तर आदि में छुपा रहता उरग [उरग] उत्त. 14/47, अनु. 708/5 है। यह लगभग एक वर्ष तक बिना भोजन किए रह Snake-सर्प। देखें-अही सकता है। [विवरण के लिए द्रष्टव्य-सचित्र विश्व कोश, Nature, उरब्भ [उरभ्र] सू. 2/2/19, ज्ञाता. 1/1/33 उवा. Incyclopedia in colour] 2/21 प्रश्नव्या. 1/6 Sheep-भेड़, मेष, मेंढ़। उद्देसग [उद्देशग] अणु. 3/75 जीव. टी.पू. 32 देखें-अमिल Termite-दीमक आकार-चींटी के समान। उरुलुंचग [उरुलुंचग] प्रज्ञा. 1/50 [पा.] लक्षण-इनके छः टांगें होती हैं। सिर के Insect of Pumpkin-घीया अथवा कद्दू का कीट, आगे दो चिमटेनुमा अंग निकले होते हैं। उरुलुंचग। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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