Book Title: Jain Agam Prani kosha
Author(s): Virendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 63
________________ जैन आगम प्राणी कोश 49 नाम से जाना जाता है। विमर्श : राजनिघंटु पृ. 601 में जाहक को कृष्ण गिरगिट का पर्याय तथा कैयदेवनिघंटु पृ. 461 में सर्प आदि का पर्यायवाची माना है।। को लीख कहा जाता है। ये कई बीमारी फैलाने में सहायक होते हैं। इनकी कई जातियां पाई जाती हैं। झस [झस] प्रश्नव्या. 1/5 Fish-मछली, मत्स्य आकार-लंबी, गोल, चपटी, बेलनाकार आदि अनेक प्रकार की। लक्षण-मछलियों का शरीर तीन भागों में विभक्त होता है-सिर, धड़ और दुम। शरीर के ऊपर, नीचे, [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-Nature,Manand animals, सचित्र विश्व कोश]opra जीवंजीव [जीवंजीव] प्रज्ञा. 1/78 जम्बू. 2/12 Common or Blue legged bustard Quail-TET, पीछे और दोनों बगल पखनियों के आकार के सुफने गूलु, चकोर, विषदर्शन, जीवंजीव। रहते हैं, जिन्हें पखनियां भी कहते हैं। ये सुफने ही देखें-चउरग (चकोर) मछलियों के हाथ पैर हैं और उन्हीं के सहारे ये इधर-उधर फिरती और अपना संतुलन कायम रखती जुगमच्छ [युगमत्स्य] प्रज्ञा. 1/56 हैं। ये मुंह द्वारा पानी खींचकर उसे अपने गले के दोनों A kind of fish-मछली की एक जाति। ओर के गलफड़ों से बाहर निकालती हैं तो गलफड़ों की देखें-झस तहों की रक्त शिराएं पानी में घुली हुई प्राण वायु को जुवंगव [युवंगव] आ.चू. 4/28 सोख लेती हैं। Young ox-तरुण बैल देखें-आवल्ल विवरण-मछलियों की लगभग विश्व भर में 15000 प्रजातियां पाई जाती हैं। मछलियों में सबसे बड़ी द्वेल जूया [यूका] प्रज्ञा. 1/50 मछली है जिसकी लम्बाई 50 फुट तक होती है। Louse-जूं मछलियों का वजन 100 ग्राम से 150 टन तक हो आकार-यह पिस्सू आदि की श्रेणी का बहुत छोटा सकता है। प्रवाल द्वीप के आस-पास की कुछ मछलियां प्राणी है। अत्यधिक रंगीन व सुन्दर होती हैं। अधिकांश मछलियां लक्षण-छः टांगों वाला बिना पंख का कीट। इसके अंडे देती हैं। कुछ मछलियां तो ऐसी हैं जो 8 से 10 मुख पर कांटे या चिमटे के समान अंग होता है जिससे लाख तक अंडे देती हैं। यह खून चूसता है। विवरण-ये परजीवी हैं अर्थात, परिपक्व अवस्था में झिंगिरा [झिंगिरा] प्रज्ञा. 1/50 [पा.]om गाय, भेड़, कुत्ते, मानव आदि के बालों में निवास करते Cricket-झिंगुर हैं तथा उनके शरीर का खून चूसते हैं। इनके अण्डों आकार-टिड्डे के समान। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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