Book Title: Jain Agam Prani kosha
Author(s): Virendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 83
________________ जैन आगम प्राणी कोश उड़ते समय या पत्तियों व फूलों पर चढ़ते समय तीन अक्षर को प्राप्त हो जाता है। यह बहुधा वृक्षों पर चढ़ जाता वाली ची-ची-ची की मधुर ध्वनि उत्पन्न करता है। है और कुशल तैराक भी होता है। मादा अपने अंडे पंक्षी [विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-भारत के पक्षी, K.N. की भांति घोंसले में देती है। Dave पृ. 1441] भोगविस [भोगविष] प्रज्ञा. 1/70 भुयंग [भुजंग] ठाणं. 4/3 जम्बू. 2/15 उत्त. A Kind of Cobra-भोग विष, शरीर में विष वाले 14/34 सर्प, फन में विष वाले सर्प। Snake-सांप देखें-अही आकार-4-16 फीट लम्बा। भुयईसर [भुजगेश्वर] प्रश्नव्या. 4/7 लक्षण-शरीर का रंग गहरा जैतूनी से काला तक होता King Cobra-शेषनाग, शंखचूड, अहिराज, शाखामुती, है। इनके गर्दन की खाल फैलकर फन का रूप धारण कृष्ण नागम (तमिल) कारु नागम (मलयालम) कर लेती है। कृष्ण-सर्पम्।। विवरण-भारत, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया आदि में इनकी आकार-लगभग 10-18 फीट लम्बा। अनेक जातियां पाई जाती हैं। कोल ब्रिड़ी वर्ग के ये लक्षण-शरीर का रंग जैतूनी या गहरा भूरा से लेकर बिल्कुल काला तक होता है। जिस पर पीलापन और कालिमा लिए हुए कुछ पट्टियां होती हैं। कभी-कभी ये पट्टियां छोटी-छोटी चित्तियों से युक्त होने के कारण धब्बेदार रेखाएं जैसी लगती हैं। युवा शेषनाग का रंग नवजात से बिल्कुल भिन्न सदस्य अच्छे धावक होने के साथ कुशल तैराक भी होते होता है। विवरण-यह विशेष कर भोगि [भोगिन्। सुपा. 399 हिमालय, असम, Snake-सर्प गोवा, बर्मा, इन्डोचीन आदि में पाया जाता है। यह विश्व - देखें-अही . का सबसे अधिक विषमय और घातक सर्प है। कुपित होने पर अपना धड़ ऊपर उठाकर, फन फुलाए, मउलि [मुकली] प्रश्नव्या. 1/7 प्रज्ञा. 1/71 चमकीली आंखें निकालकर खड़ा हो जाता है। एक Without hood Snake-मुकली सर्प (बिना फन आदमी को मारने के लिए जितने विष की आवश्यकता वाले सप) होती है, उसका दस गुणा विष शेषनाग के एक दांत आकार-कुछ इंच से लेकर 40 फीट तक लम्बा। । मारने में निकलता है। यह इतनी जोर से श्वास खींचता लक्षण-इन सर्पो के फन नहीं होता तथा जबड़ों और है कि छोटे-मोटे प्राणी श्वास के साथ खिंचे चले आते तालु में क्रमशः नुकीले और ठोस दांत होते हैं। हैं। इसके द्वारा डसा गया व्यक्ति 8-10 मिनट में मृत्यु विवरण-विश्वभर में इनकी सैकड़ों जातियां पाई हैं। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

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