Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 9
________________ अर्थात्, लाला, मैं गोधन की सौगंध खाकर कहती हूँ मैं ही तेरी माता हूँ ओर तू मेरा बेटा है। लेकिन आज की स्थिति यह है कि माता के मुँह से भूल से भी शिशु के लिए 'तू' निकल गया तो मानो बड़ा भारी अपराध हो गया। बच्चे को पालने में लिटाकर उसके हाथ में खिलौना देकर आज की माता उससे कहती है-“आप इस खिलौने से खेलिए, रोना नहीं, मैं अभी आ रही हूँ" फिर लौटकर कहती है- “अरे-अरे ! आप तो रोने लगे हो? आप जल्दी बड़े हो जाइए । तब आप बाहर जाकर खेला करेगें, रोना छोड़ देंगे।" इसी संदर्भ में एक विनोद है। जन्म लेने के बाद पिता अपने नवजात शिशु से कहता है- आपने जन्म ले लिया, आप पैदा हो गए? यहाँ लगता है जैसा शिशु नहीं 'आप' का जन्म हुआ है, कौन जानता है कि इस आडम्बर की सीमा कहाँ रुकेंगी? सम्मान सूचक 'आप' सम्बोधन का में किंचित् भी विरोधी नहीं हूँ। मेरा अभिप्राय यही है कि 'तू' और 'आप' का स्थान | मत बदलिए। जिस तरह 'आप' वालों के लिए 'तू' अनुचित है, उसी तरह से जहाँ 'तू' के प्यार दुलार, लाड़ और वात्सल्य की जरूरत है, वहाँ 'आप का सम्मान उसी तरह बेमेल लगेगा, जैसे खीर में नमक की मिलावट कर दी गई हो । मेरा अभिप्राय मात्र इतना ही है कि जो सज्जन हरियाणवी के सहज-सरल खुलेपन, आत्मीयता और प्रेम से परिपूर्ण 'तू' का मखौल उड़ाकर जन्म लेते हुए शिशु को भी आप कहकर यह संस्कार डालना चाहते हैं कि हृदय की सहजता को ढका ही रहना चाहिए। यह तो विडम्बना ही कही जाएगी। जैसा कि मैंने पूर्व में कहा, मातृभाषा हरियाणवी होने के कारण मैंने प्रस्तुत कहानियों का सृजन उस भाषा में किया है। भाषा और जाति के प्रति भगवान महावीर की उदार दृष्टि भी मेरी प्रेरणा रही है। राष्ट्रभाषा हिन्दी में विविध विषयों पर मेरी तीस पुस्तकें पाठकों के हाथों में पहुँच चुकी हैं, पर हरियाणवी भाषा में रचित और प्रकाशित यह मेरी प्रथम कृति है। इसके साथ मैंने 'उत्तराध्ययन-सूत्र' को भी हरियाणवी भाषा में प्रस्तुत किया है। अब कुछ जानकारी प्रस्तुत कृति के विषय में भी। इस पुस्तक में संकलित/संयोजित कहानियाँ जैन कथा-साहित्य के विपुल भण्डार से चुनी गई है। इनमें सहज सरलता/रोचकता के साथ-साथ जीवन-संदेश, जीवन-रस और मानव को वस्तुतः मानव बनाने की प्रेरणा छिपी है। सभी कहानियों में जीवन के विविध पहलुओं को छुआ गया है। इन कथाओं में कुछ (iv)

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