Book Title: Haribhadrasuri Granth Sangraha
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 206
________________ ॥८॥ श्री धर्मविन्दुप्रकरणम्॥ ॥१०४॥ RRRHHHH तथा-सुकुलागमनोक्तिरिति ॥ १७॥ तथा-कल्याणपरम्पराख्यानमिति ॥ १८॥ तथा-असदाचारगर्हेति ॥२॥०॥ | ॥ १९ ॥ तथा-तत्स्वरूपकथनमिति ॥ २०॥ तथा-स्वयं परिहार इति ॥ २१॥ तथा-ऋजुभावाऽऽसेवन द्वितीयो मिति ।। २२ ॥ तथा-अपायहेतुत्वदेशनेति ॥ २३ ॥ नारकदुःखोपवर्णनमिति ॥ २४ ॥ तथा-दुष्कुलजन्म धर्मदेशनाप्रशस्तिरिति ॥२५॥ दुःखपरम्परानिवेदनमिति ॥ २६ ॥ तथा-उपायतो मोहनिन्देति ॥ २७॥ तथा- ध्यायः॥ सज्ज्ञानप्रशंसनमिति ॥ २८ ॥ तथा-पुरुषकारसत्कथेति ॥ २९ ॥ तथा-वीर्यर्द्धिवर्णनमिति ॥ ३०॥ तथापरिणते गम्भीरदेशनायोग इति ॥ ३१॥ श्रुतधर्मकथनमिति ॥ ३२॥ बहुत्वात्परीक्षावतार इति ॥ ३३ ॥ कषादिप्ररूपणेति ॥ ३४ ॥ विधिप्रतिषेधो कष इति ॥ ३५॥ तत्सम्भवपालनाचेष्टोक्तिश्छेद इति ॥ ३६॥ उभयनिबन्धनभाववादस्ताप इति॥ ३७॥ अमीषामन्तरदर्शनमिति॥३८॥ कषच्छेदयोरयत्न इति ॥३९॥ तभावेऽपि तापाभावेऽभाव इति ॥४०॥ तच्छुद्धौ हि तत्साफल्यमिति ॥४१॥ फलवन्तौ च तो वास्तवाविति ॥ ४२ ॥ अन्यथा याचितकमण्डनमिति ॥४३॥ नातत्त्ववेदिवादः सम्यग्वाद इति ॥ ४४ ॥ बन्धमोक्षोपपत्तितस्तच्छुद्धिरिति ॥४५॥ इयं बध्यमानबन्धनभाव इति॥४६॥ कल्पनामात्रमन्यथेति ॥४७॥ बध्यमान आत्मा बन्धनं वस्तुसत् कर्मेति ॥ ४८॥ हिंसादयस्तद्योगहेतवः, तदितरे तदितरस्येति ॥ ४९॥ प्रवाहतोऽनादिमानिति ॥५०॥ कृतकत्वेऽप्यतीतकालवदुपपत्तिरिति ॥५१॥ वर्तमानताकल्पं कृतकत्वमिति ॥५२॥ परिणामिन्यात्मनि हिंसादयो, भिन्नाभिन्ने च देहादिति ॥५३|| अन्यथा तदयोग इति॥५४॥ ID॥१०४॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only ICCw.jainelibrary.org

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