Book Title: Haribhadrasuri Granth Sangraha
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
View full book text
________________
13
अध्याय
स्थविरकल्पसाधु धर्मनिरूपणम् ॥
SPORARGAHRA
तथा तत्त्वाभिनिवेश इति ॥ ४९ ॥ तथा युक्तोपधिधारणेति ॥५०॥ तथा मू त्याग इति ॥५१॥ तथा अप्रतिबद्धविहरणमिति ॥५२॥ तथा परकृतबिलवास इति ॥५३॥ तथा अवग्रहशुद्धिरिति ॥५४॥ मासादिकल्प इति ॥५५ ।। एकत्रैव तत्क्रियेति ॥५६॥ तत्र च सर्वत्राममत्वमिति ।। ५७॥ तथा निदानपरिहार इति ।। ५८ ॥ विहितमिति प्रवृत्तिरिति ॥ ५९॥ तथा विधिना स्वाध्याययोग इति ॥ ६०॥ तथा आवश्यकापरिहाणिरिति ॥ ६१॥ तथा यथाशक्ति तपासेवनमिति ॥ ६२॥ तथा परानुग्रहक्रियेति ॥६३ ॥ तथा गुणदोषनिरूपणमिति ॥ ६४॥ तथा बहुगुणे प्रवृत्तिरिति ।। ६५॥ तथा क्षान्तिार्दवमार्जवमलोभतेति ॥ ६६ ॥ क्रोधाद्यनुदय इति ।। ६७॥ तथा वैफल्यकरणमिति ।। ६८॥ विपाकचिन्तेति ॥ ६९॥ तथा धर्मोत्तरो योग इति ॥७॥ तथा आत्मानुप्रेक्षेति ॥ ७॥ उचितप्रतिपत्तिरिति ।। ७२ ॥ तथा प्रतिपक्षासेवनमिति ॥ ७३ ।। तथा आज्ञाऽनुस्मृतिरिति ॥ ७४॥ तथा समशत्रुमित्रतेति ।। ७५ ॥ तथा परीषहजय इति ॥ ७६ ।। तथा उपसर्गातिसहनमिति ॥ ७७॥ तथा सर्वथा भयत्याग इति ॥ ७८ ॥ तथा तुल्याश्मकाश्चनतेति ॥ ७९ ॥ तथा अभिग्रहग्रहणमिति ।। ८० ॥ तथा विधिवत्पालनमिति ।। ८१ ॥ तथा यथार्ह ध्यानयोग इति ।। ८२॥ तथा अन्ते संलेखनेति ॥ ८३ ॥ संहननाद्यपेक्षणमिति ॥ ८४॥ भावसंलेखनायां यत्न इति ।। ८५॥ ततो विशुद्धं ब्रह्मचर्यमिति ।। ८६ ॥ विधिना देहत्याग इतीति ॥ ८७॥ निरपेक्षयतिधर्मस्त्विति ।। ८८ ॥ वचनगुरुतेति ॥ ८९॥ तथा अल्पोपधित्वमिति ॥९॥ तथा निष्पतिकर्मशरीरतेति
161-62
%
Jain Education
a
l
For Personal & Private Use Only
Tww.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258