Book Title: Ghantamantrakalpa
Author(s): Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 18
________________ । इसलिए पुरुषार्थ के साथ में पुण्य की भी परभ श्रावश्यकता होती है। पुण्यात्मा जीव के अल्प (थोडे) पुरुषार्थ से ही कार्य सिद्ध हो जाता है। पुण्यात्मा जीव को ही यंत्र तंत्र मंत्र की सिद्धि होती है। पापी और अधर्मी को कुछ भी सिद्ध नहीं होता है, चाहे वह लाख पुरुषार्थ करे। : लोग कहते हैं-मंत्र कुछ भी नहीं करता, सब मिथ्या है, ढकोसला है। लेकिन मेरा यह कहना है कि यंत्र, तंत्र मंत्र मिथ्या नहीं हैं. पुण्यात्मा जोच को सिद्ध भी होते हैं। उनके मंत्र के प्रभाव से कार्य सिद्ध होते हैं । शांति भी होती है । इन्द्रिय जनित सुख भी प्राप्त होता है। विजयाच पर्वत पर रहने वाले विद्याधर लोग मंत्र सिद्ध भी करते हैं और उनका फल भी भोगते हैं। हमारी भावना ठीक नहीं हो सो मंत्र भी सिद्ध नहीं होता है, और फिर पुण्य भी इतना नहीं कि कार्य की सिद्धि हो । __ जिन पुरुषों के पूर्व पुण्य का उदय है और साधना भी ठीक है, भावना भी ठीक है, उन्हीं को मंत्र सिद्ध होते हैं। मंत्र सिद्धि के लिए अनेक कार्य कारण भाव है। जब तक सब ठीक नहीं मिलते तब तक मंत्र सिद्ध नहीं होता है। अनेक प्रकार के मंत्र हैं, जो पूर्व शास्त्र भंडारों में हस्तलिखित रूप में भरे पड़े हैं। उता कोई जायोग करने वाला नहीं है, न ही प्रकाश में आ रहे हैं, किसो का उधर उपयोग भी नहीं लगा है उन मंत्र शास्त्रों में से एक यह 'घण्टाकर्ण मंत्र कल्प' भी महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके कुछ यंत्र मंत्र पहले महावीरजी से छपने वाले वहद महावीर कीर्तन में छपे भी है । श्वेताम्बर परम्परा में अहमदाबाद सारा भाई मणिलाल नवाब के यहां से भी घण्टाकर्ण यंत्र मंत्र छपे हैं। दिगम्बर परम्परा में पारा शास्त्र भण्डार में यह घण्टाकरण मंत्र कल्पः हस्तलिखित रूप में था, सो वहां से लेकर मैंने इसका हिन्दी अनुवाद किया है । मात्र पथ के उद्धारार्थ । इसलिए इसके जानकार अवश्य लाभ उठाचे अवलोकन करें, कहीं पर भी गलती हो लो सुधार कर पढे और मुझे क्षमा करें। मैंने यह कार्य ग्रंथ के उद्धार के लिए ही किया है न कि किसी का अहित करने के लिए । पूर्ण विधि मुझे जैसी उपलब्ध हुई है, उसी प्रकार मैंने लिखी है। मेरे पास कई घण्टा कर्ण मंत्र कल्पः की हस्तलिखित प्रतियां हैं, उन सब को सामने रखकर इस प्रति को तैयार किया है, तो भी गलती रहना स्वाभाविक है । मैं तो छद्मस्त हूँ। मंत्र शास्त्रों के बीजा: क्षरों का पाठ भेद अनेक हैं। अनेक प्रतियों में भिन्न-भिन्नता है। शुद्ध कौनसा है, यह निर्णय करना बड़ा कठिन है, तो भी मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार ठीक करता हुअा पाठ भेद रख कर प्रारके सामने रक्खा है। इस ग्रंथ के यंत्र और मंत्र से अनेक प्रकार के कार्य सिद्ध होते हैं, लेकिन घण्टा कर्ण मणिभद्र महावीर यक्ष इस कल्पः का अधिनायक है। मंत्र साधक सावधानी पूर्वक साधना विधि के अनुसार करें, अवश्य ही कार्य को सिद्धि होगी । किसी भी मंत्र साधना

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