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प्रकाशक श्रीदि.जैन कुंशुविजय ग्रंथमालासमिति
जयपुर (राजस्थान)
प्रकाशनसंयोजक शान्तिकुमार गंगवाल
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यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र
शास्त्रानुकूल ही है।
"... यंत्र मंत्र संत्र अन शास्त्रानुकूल ही है। मंत्रो की शक्ति द्वारा ही हम पत्थर से बनी प्रतिमा को भगवान मानते हैं। प्रतिमा की पूजा अर्चना करके । लाभ उठाते हैं।
यंत्र भी जैन शासन के मन शास्त्रों से हैं । यह भी एक धर्म ध्यान का
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तंत्र विद्या भी एक जैन आगम का हर अंग है । किसी प्रकार का रोग आदि हो जाने पर, नजर लग जाने पर तंत्र विद्या के प्रयोग से प्रत्यक्ष में लाभ ह होते देखा जाता है । औषधि शास्त्र भो तंत्र विद्या में ही आता हैं।
अतः ओ मंत्र, यंत्र एवं तंत्र को नहीं मानते, वह हमारे विचार से ३ जैन शास्त्रों को हो नहीं मानते। जो यंत्र, मंत्र, तंत्र विद्या का विरोध करते
हैं वे जैन आगम का ही विरोध करते हैं। जो जन प्रागम का विरोध करते हैं है यह जैन नहीं हो सकते । जो जैन शास्त्रों को नहीं मानते उन्होनें अभी
सम्यकदर्शन को भी प्राप्त नहीं किया है। ऐसे व्यक्तियों का कल्याण अभी
हमारी भावना है कि ऐसे व्यक्तियों को भी ऐसी बुद्धि प्राप्त हो कि वह किसी प्रकार से जैन शासन के मूल प्रागम शास्त्रों पर अपनी प्रास्था जमा कर अपना कल्याण करें।
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श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रंथमाला समिति
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घण्टाकर्ण मन्त्र कल्पः
प्रकाशन संयोजक : शासकुमार गंगवाल
देवेन्द्र
अनाचार्य
कार्यालय
१९३६, जौहरी बाजार, घी वालों का रास्ता, जयपुर - ३०२००३ ( राजस्थान )
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प्रकाशक
श्री दिगम्बर जैन कुत्थु विजय ग्रन्थमाला समिति:
संग्रहकर्त्ता :
परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्यु सागरजी महाराज
क्रमांक 189
उदयपुर
शोध
मेरों की गली,
राज.
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परम पूज्य श्री १०८ समाधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज के विशाल संघ सहित राजस्थान प्रान्त में श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र तिजारा में प्रवेश केशुभावसर पर प्रकाशित
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सर्वाधिकार सुरक्षित
मूल्य :
(sin व्यय अतिरिक्त)
60
मुद्रक : मूनलाइट प्रिन्टर्स, जयपुर-३
ग्रन्थ प्राप्ति स्थान :
श्री विगम्बर जैन कुन्यु विजय ग्रंथमाला समिति १६३६, जौहरी बाजार, घी वालों का रास्ता:
कसेरों की गली, जयपुर - ३ (राज.)
गणधराचार्य महाराज की प्राज्ञानुसार पाठकों से विनम्र निवेदनप्रस्तुत ग्रंथ यंत्र मंत्र का ग्रंथ है। इसका विनय पूर्वक अध्ययन करे और यथा स्थान रक्खें, जिससे इसका प्रविनय न हो । साथ ही इस बात का भी विशेष ध्यान रहे कि यह ग्रंथ किसी भी ऐसे व्यक्ति के हाथ में न जाने पाये जो इस बात का ध्यान नहीं रक्खे और इसका दुरुपयोग करें । अन्यथा ग्राप दोष
के भागी होंगे ।
प्रकाशन संयोजक
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श्री १००८ भगवान पार्श्वनाथ
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इस शताब्दी के प्रथम दिगम्बराचार्य परम तपस्वी
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परमपूज्य समाधि सम्राट चारित्र चक्रवर्ती श्री १०८ आचार्य आदिसागरजी महाराज (अंकलीकर)
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बहुभाषाविद् महान मंत्रवादो तीर्थ भक्त शिरोमणि
समाधि सम्राट
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परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्य महावीर कीतिजी महाराज
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सन्मार्ग दिवाकर निमित्तज्ञान शिरोमणि
परमपूज्य श्री १०८ श्राचार्य रत्न बिमल सागरजी महाराज
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परमपुज्य श्री १०८ प्राचार्य आदिसागरजी महाराज के
तृतीय पट्टाधीश
परम तपस्वी मुबित पथ नायक संत शिरोमरिण श्री १०८ प्राचार्य सन्मति सागरजी महाराज
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ग्रंथ के संग्रहकर्ता वात्सल्य रत्नाकार, श्रमण रत्न, स्यावाद केशरी, जिनागम
सिद्धान्त महोवधि वादिभसूरि
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परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज
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परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य महाराज के परम शिष्य
उपाध्याय एलाचार्य सिद्धान्त चक्रवर्ती
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श्री १०८ कनकनन्दिजी महाराज
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विदुषिरत्न, सम्यग्ज्ञान शिरोमसि सिद्धान्त विशारद जिनधर्म प्रचारिका
परम पूज्य श्री १०५ गणिती आर्थिक विजयामती माताजी
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बड़ौत (उ० प्र०) निवासी परम गुरुभक्त श्रीमान अशोक कुमार जी जैन एवं उनकी धर्मपत्नि परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुथुसागर जी महाराज से शुभाशीर्वाद प्राप्त करते हुए ।
[आपने प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशन खर्च को वहन कर ग्रन्थमाला
___ समिति को सहयोग प्रदान किया है ।
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र्गदर्शक :- आचात श्री विहिासेपारमा
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परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुथुसागरजी महाराज से घण्टाकर्ण मन्त्र कल्पः ग्रंथ का प्रकाशन कार्य पूर्ण कराने हेतु मंगलमय शुभाशीर्वाद प्राप्त करते हुए
ग्रंथमाला के प्रकाशन संयोजक
श्री शान्तिकुमार मंगवाल
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परम पूज्य श्री १०८ सन्मार्ग दिवाकर निमित्तज्ञान शिरोमरिण "खण्ड विद्या धुरन्धर" प्राचार्य विमल सागर जी
महाराज
का
मंगलमय शुभाशीर्वाद मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई है कि श्री दि० जैन कुथु विजय ग्रन्थमाला समिति जयपुर (राज.) १६वें पुष्प के रूप में श्री ' घण्टाकर्ण मंत्र कल्प:' ग्रन्थ का प्रकाशन कर रही है। यह मंत्र शास्त्र भव्य जीवों के लिए, संसार में भ्रमण करते हुए प्राधि-व्याधि रोगों के संकट से शांति प्राप्त कराने में तथा मिथ्यात्व से बचाने में कार्यकारी सिद्ध होगा।
गणघराचार्य कुथु सागरजी महाराज ने कठिन परिश्रम करके जन कल्याण की भावना से इस ग्रंथ का संग्रह किया है, उनको हमारा पूर्ण आशीर्वाद है कि वे भविष्य में भी इस प्रकार के महत्वपूर्ण ग्रंथों का संग्रह करने का कार्य करते रहें।
ग्रंथमाला समिति, बहुत ही लगन व परिश्रम से कार्य कर रही है। श्री शान्ति कुमार जी गंगवाल जो कि इस ग्रंथमाला के प्रकाशन संयोजक हैं, उनकी लगन एवं सेवायें अत्यन्त प्रशंसनीय हैं। ग्रंथमाला समिति इसी प्रकार प्रागे भी महत्वपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन कर जिनवाणी प्रचार-प्रसार का कार्य करती रहे, इसके लिए गंगवालजी 4 इस कार्य में संलग्न अन्य उनके सहयोगियों को हमारर बहुत-बहुत आशीर्वाद है।
प्राचार्य विमल सागर
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इस शताब्दी के प्रथम दिगम्बराचार्य आदि सागरजी महाराज ( अंकलीकर ) के तृतीय पट्टाधीश परम पूज्य श्री १०८ प्राचार्य परम तपस्वी मुक्ति पथ नायक संत शिरोमणि सन्मति सागरजी महाराज का
मंगलमय शुभाशीर्वाद
हमें यह जानकर प्रशन्नता हुई है कि युग प्रधान चारित्र चक्रवर्ती प्राचार्य श्रादिसागरजी महाराज ( अंकलीकर) की परम्परा के सूर्य गणधराचार्य श्री कुन्थुसागरजी महाराज ने अपने गुरुवर्यं तीर्थवन्दना भक्त शिरोमणि महान मंत्रवादी परमपूज्य आचार्य श्री महावीर जी महाराज से जो अध्ययन किया है उसमें से कुछ जनहित के लिये "घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः ग्रन्थ के रूप में संग्रह किया है। लुप्त विद्याओं का प्रादुर्भाव करके गरवराचार्य महाराज महान साहस का परिचय दे रहे हैं। प्रकाशित हो रहे ग्रंथ के माध्यम से कल्याणेच्छू सभी भव्य आत्माएं स्वार्थं के साथ परमार्थ भी साधे, ऐसी श्राशा ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास है ।
ग्रंथ का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन कुन्यु विजय ग्रंथमाला समिति जयपुर (राजस्थान) के द्वारा १६ वें पुष्प के रूप में करवाया जा रहा है। अतः ग्रंथ प्रकाशन के लिये' ग्रंथमाला के प्रकाशन संयोजक श्री शांति कुमारजी गंगवाल एवं इनके सहयोगियों को हमारा बहुत-२ मंगलमय शुभाशीर्वाद है ।
प्राचार्य सन्मति सागर
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ग्रन्थ के संग्रहकर्ता परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य
वात्सल्य रत्नाकर, श्रमरण रत्न, स्याद्वाद केशरी वादिभ सूरि जिनागम सिद्धान्त महोदधि कुन्थु सागरजी महाराज के प्रकाशित ग्रन्थ के बारे में विचार एवं
मंगलमय शुभाशीर्वात के
दो शब्द
वर्तमान में यह जो इन्द्रिय सुख के लिए इधर-उधर के मांत्रिक-तांत्रिक का सहारा ले रहा है। अनेक प्रकार की इस प्रकार अपने इष्ट की सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है। नहीं है ।
भटक रहा है। नाना प्रकार मिथ्या मान्यताएँ करता है । ऐसे जीव को धर्म की चाह
जीव जब तक केवली प्रणीत धर्म की शरण में नहीं जाता है, तब तक उसे शांति नहीं मिलती है और सच्चे सुख को प्राप्ति भी नहीं होती हैं ।
प्रत्येक जीव इसी बात को चाह रहा है कि मेरी इष्ट सिद्धि हो, घर में अटूट घन हो, परिवार में शांति हो, पुत्र, पौत्र से घर भरा रहे समाज में मेरा सम्मान रहे, शरीर निरोगी रहे। इसी की पूर्ति में प्रत्येक मनुष्य रात दिन लगा रहता है। इसके लिए अनेक जगह जाता है, परन्तु निराशा हाथ लगती है और कुछ भी उसको प्राप्त नहीं होता है ।
सुख शान्ति के लिये पूर्व पुष्य की परम आवश्यकता हैं। जब तक पूर्व पुण्य नहीं होगा तब तक कार्य सिद्ध नहीं होता है ।
कार्य की सिद्धि के लिए पूर्व पुण्य और पुरुषार्थ की परम आवश्यकता होती है । सुपुरुषार्थं नहीं तो पुण्य नहीं और पुण्य नहीं तो पुरुषार्थ का फल प्राप्त नहीं
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इसलिए पुरुषार्थ के साथ में पुण्य की भी परभ श्रावश्यकता होती है।
पुण्यात्मा जीव के अल्प (थोडे) पुरुषार्थ से ही कार्य सिद्ध हो जाता है। पुण्यात्मा जीव को ही यंत्र तंत्र मंत्र की सिद्धि होती है। पापी और अधर्मी को कुछ भी सिद्ध नहीं होता है, चाहे वह लाख पुरुषार्थ करे।
: लोग कहते हैं-मंत्र कुछ भी नहीं करता, सब मिथ्या है, ढकोसला है। लेकिन मेरा यह कहना है कि यंत्र, तंत्र मंत्र मिथ्या नहीं हैं. पुण्यात्मा जोच को सिद्ध भी होते हैं। उनके मंत्र के प्रभाव से कार्य सिद्ध होते हैं । शांति भी होती है । इन्द्रिय जनित सुख भी प्राप्त होता है। विजयाच पर्वत पर रहने वाले विद्याधर लोग मंत्र सिद्ध भी करते हैं और उनका फल भी भोगते हैं। हमारी भावना ठीक नहीं हो सो मंत्र भी सिद्ध नहीं होता है, और फिर पुण्य भी इतना नहीं कि कार्य की सिद्धि हो ।
__ जिन पुरुषों के पूर्व पुण्य का उदय है और साधना भी ठीक है, भावना भी ठीक है, उन्हीं को मंत्र सिद्ध होते हैं।
मंत्र सिद्धि के लिए अनेक कार्य कारण भाव है। जब तक सब ठीक नहीं मिलते तब तक मंत्र सिद्ध नहीं होता है।
अनेक प्रकार के मंत्र हैं, जो पूर्व शास्त्र भंडारों में हस्तलिखित रूप में भरे पड़े हैं। उता कोई जायोग करने वाला नहीं है, न ही प्रकाश में आ रहे हैं, किसो का उधर उपयोग भी नहीं लगा है उन मंत्र शास्त्रों में से एक यह 'घण्टाकर्ण मंत्र कल्प' भी महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
इसके कुछ यंत्र मंत्र पहले महावीरजी से छपने वाले वहद महावीर कीर्तन में छपे भी है । श्वेताम्बर परम्परा में अहमदाबाद सारा भाई मणिलाल नवाब के यहां से भी घण्टाकर्ण यंत्र मंत्र छपे हैं। दिगम्बर परम्परा में पारा शास्त्र भण्डार में यह घण्टाकरण मंत्र कल्पः हस्तलिखित रूप में था, सो वहां से लेकर मैंने इसका हिन्दी अनुवाद किया है । मात्र पथ के उद्धारार्थ । इसलिए इसके जानकार अवश्य लाभ उठाचे अवलोकन करें, कहीं पर भी गलती हो लो सुधार कर पढे और मुझे क्षमा करें। मैंने यह कार्य ग्रंथ के उद्धार के लिए ही किया है न कि किसी का अहित करने के लिए । पूर्ण विधि मुझे जैसी उपलब्ध हुई है, उसी प्रकार मैंने लिखी है। मेरे पास कई घण्टा कर्ण मंत्र कल्पः की हस्तलिखित प्रतियां हैं, उन सब को सामने रखकर इस प्रति को तैयार किया है, तो भी गलती रहना स्वाभाविक है । मैं तो छद्मस्त हूँ। मंत्र शास्त्रों के बीजा: क्षरों का पाठ भेद अनेक हैं। अनेक प्रतियों में भिन्न-भिन्नता है। शुद्ध कौनसा है, यह निर्णय करना बड़ा कठिन है, तो भी मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार ठीक करता हुअा पाठ भेद रख कर प्रारके सामने रक्खा है।
इस ग्रंथ के यंत्र और मंत्र से अनेक प्रकार के कार्य सिद्ध होते हैं, लेकिन घण्टा कर्ण मणिभद्र महावीर यक्ष इस कल्पः का अधिनायक है। मंत्र साधक सावधानी पूर्वक साधना विधि के अनुसार करें, अवश्य ही कार्य को सिद्धि होगी । किसी भी मंत्र साधना
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में श्रद्धा की परम आवश्यकता है। श्रद्धा नहीं है तो नहीं करें। लेकिन निंदा नहीं करें। निदा से हानि उठानी पड़ती है। मंत्रों का दुरुपयोग करने वाले को पाप लयेगा। उसी की जवाबदारी रहेगी। हमारी नहीं । हमारा मात्र उद्देश्य मंत्र शास्त्र का उद्धार करना है। किसी का अहित नहीं, ध्यान रखें।
___ ग्रंय को छपाने हेतु परम गुरुभक्त बडौल (उ.प्र.) निवासी श्रीमान अशोक कुमार जी जैन ने आर्थिक सहयोग प्रदान किया है। मेरा इनको तथा इनके सर्व परिवार को बहत २ धर्मवद्धि प्राशीर्वाद है। अथ के संग्रह कार्य में जिन २ प्रतियों का मैने सहारा लिया उन सभी का मैं आभारी हूं। मंत्र शास्त्र विरोधियों को भी मेरा आशीर्वाद है क्योंकि उनके विरोध के बिना मेरे मंत्र सास्त्र का प्रचार नहीं हो पाता।
इस ग्रंथ का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन कुथु विजय ग्रथमाला समिति जयंपुर । (राजस्थान) द्वारा १६वें पुष्प के रूप में हुआ है। अथ प्रकाशन कार्य कठिन कार्य होता है जिसमें मंत्र शास्त्रों का कार्य तो बहुत ही कठिन होता है।
हमारी ग्रंथमाला के प्रकाशन संयोजक श्री शांति कुमारजी मंगवाल है जो बहुत . ही परिश्रमो तथा पुरुषार्थी होने के साथ-साथ देव शास्त्र गुरु के परमभक्त है । इनके सुपुत्र श्री प्रदीप कुमारजी भी पाप जैसे ही है। इन्हीं के कारण यह ग्रंथमालो बहुत ही प्रगति कर रही है, और इन्हीं के कठिन परिश्रम से अब तक १५ महत्वपूर्ण मथों का.. प्रकाशन हो सका है और यह १६ वा अथ प्रकाशित हzा है। अतः मेरा श्री शान्ति कुमारजी प्रदीप कुमारजी गंगवाल एवं ग्रंथमाला के सभी सहयोगी, कार्यकर्ताओं को बहुल २ मंगलमय शुभाशीर्वाद है। .
गणधराचार्य कुन्थु सागर
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परम पूज्या श्री १०५ गणिनी प्रायिका विदुषि रत्न सम्यग्ज्ञान शिरोमरिण, सिद्धान्त विशारद जिनधर्म
प्रचारिका विजयामती माताजी ... . का - मंगलमय शुभाशीर्वाद
- यमाला समिति के प्रकाशन संयोजक श्री शांति कुमार जी के पत्र से विदित हुश्रा कि श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रन्थमाला समिति जयपुर (राजस्थान) के द्वारा १६वें पुष्प के रूप में घण्टाकर्ण मंत्र कल्प: ग्रंथ का प्रकाशन करवाया जा रहा है। यह आनकर परम हर्ष है।
ग्रंथ प्रकाशन कार्य के लिये नयमाला समिति के प्रकाशन संयोजक एवं इनके सहयोगियों को हमारा पूर्ण आशीर्वाद है कि माप इसी प्रकार धर्म प्रभावना का कार्य करते हुए सदा पागमानुकुल प्रार्ष परम्परा के पोषक साहित्य का प्रकाशन करते रहे, जिससे अनेकान्त और स्थावाद को बल मिले।
गणिनी प्रायिका विजयामतो
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श्री १०५ क्षुल्लक चैत्य सागरजी महाराज
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मंगलमय शुभाशीवाद मुझे यह जानकर हादिक प्रशन्नता है कि श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रन्थमाला समिति जयपुर (राजस्थान) द्वारा अनेक महान महान अप्रकाशित ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है और हो रहा है। अभी वर्ष १९६० का मेरा वर्षायोग जयपुर में ही हुमा और इसी बीच मैंने श्री घण्टाकर्ण मन्त्र कल्प: ग्रन्थ की मूल प्रति ग्रन्थमाला के प्रकाशन संयोजक श्री शान्ति कुमारजी गंगवाल से देखने का मौका प्राप्त हुआ, जिसका प्रकाशन यह ग्रन्थमाला समिति करवा रही है। इस महान ग्रन्ध का संग्रह परम पूज्य प्रातः स्मरणीय श्री १०८ गरधराचार्य कुल्थ सागरजो. महाराज ने किया है इस ग्रन्थ में अनेक यंत्र मंत्र प्रकाशित किये गये है जिनके माध्यम से भव्यजीव ग्रन्थ में वरिणत विधि तथा पूर्ण श्रद्धा के साथ उपयोग करने से अनेक संसारी माघामों तथा संकटों से मुक्ति पा सकते है। आज समाज में अनेकों लोग विभिन्न प्रकार के संकटों से पीड़ित है और उनसे छुटकारा पाने हेतु इधर उधर भटकते रहते है। अत: समाज के लोगों के लाभार्थ अपने अमूल्य समय में से समय निकालकर परम पूज्य गगधराचार्य महाराज ने जो इस. ग्रन्थ का संग्रह करने का महान कार्य किया है इसके लिये मैं उनके धः चरणों में शत-शत बार नमोस्तु अर्पित करता हुमा प्रार्थना करता हूं कि आप इसी प्रकार महान महान ग्रन्थों का संग्रह कर हम सभी को लाभ पहुंचाते रहे।
इस ग्रन्थ का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रन्यमाला समिति के द्वारा हो रहा है । ग्रन्थ प्रकाशन एक महान विकट कार्य है। फिर भी इस ग्रन्थमाला समिति ने अल्प समय में अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन कर श्रमण वर्ग तथा समाज में काफी ख्याति प्राप्त करली है।
ग्रन्थमाला के अल्प प्राधिक साधन है। फिर भी इस ग्रन्थमाला के सुचारू रूप से चलाने में ग्रन्थमाला के प्रकाशन संयोजक गुरुउपासक जिनवाणी सेवक श्रावक सिरोमणि धर्मालंकार श्री शान्ति कुमार जी गंगवाल तथा उनके सुपुत्र श्री प्रदीप कुमारजी गंगवाल का विशेष योगदान है । मेरा इनको भूरि-भूरि शुभाशीर्वाद है कि प्राप अनेक प्रकार के बाधाओं तथा विरोधियों का विरोध भी सहन करते हुए अपने प्रकाशन कार्यों में निरन्तर लगे रहे और नवीन-नवोन ग्रन्थों का प्रकाशन करते रहे।
क्षुल्लक चत्य सागर
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प्रस्तावना
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विज्ञान के इस उत्कर्ष काल में मंत्रों पर विश्वास करना अथवा मंत्रो द्वारा किसी फल की प्राप्ति की माशा करना कुछ अटपटासा लगता है। लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि मंत्र शास्त्र आज भी अपनी जगह है । उनका वृहद् साहित्य है । कुछ ग्रंथ प्रकाशित होने के पश्चात् भी अभी बहुत सा साहित्य अप्रकाशित है। राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में मंत्र शास्त्र को बहुत सी पाण्डुलिपियां हमारे देखने में आयी हैं जिनका उल्लेख राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों को ग्रय सूचियां भाग एक, तीन, चार एवं पांध में देखा जा सकता है।
पिछले कुछ वर्षों से मंत्र शास्त्र पर विशेष कार्य हुमा है। लघुविद्यानुवाद, मंत्रानुशासन, णमोकार कल्पः जैसी रचनायें प्रकाशित भी हुई है। इन रचनाओं के प्रकाशन से मंत्र साहित्य को सामान्य पाठकों तक पहुंचने में बहुत सहायता मिली है। इसके पूर्व मंत्र शास्त्र के ग्रंथ को देखकर ही पढ़कर रख दिया जाता था कि यह तो उनके समझ के बाहर है। लेकिन जब मंत्र शास्त्र के ग्रथ छपकर ग्राम पाठकों तक पाने लगे है तब से उनकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई है। यदि ऐसा नहीं होता तो लघुविद्यानुवाद का दूसरा संस्करण नहीं निकल सकता था।
मंत्रों की साधना सरल कार्य नहीं है और उसे सामान्य गुहस्य अथवा साधु भी सिद्ध नहीं कर सकता। प्राचार्य धरसेन ने जब एक अक्षर न्यून अथवा एक अक्षर अधिक वाला मंत्र भूतवलि एवं पुष्पदन्त को साधना के लिये दिया था तो उन्हें सही देवी की सिद्धि नहीं हो सकी थी तथा उन्होंने अक्षरों को ठीक करके मंत्र साधना की तथा उन्हें इच्छित देवी के दर्शन हो सके थे। इसलिये गणधराचार्य कुथु सागरजी महाराज के शब्दों में पुण्यात्मानों को ही मंत्र सिद्ध हो सकते हैं। पापात्माओं को तो मंत्र साधना से दूर ही रहना चाहिये।
- जैन इतिहास को उठाकर देखें तो हमें ऐसे अनेकों प्राचार्यों के नाम मिल जावेगे जिन्होंने अपने मंत्रों के प्रभाव से बहुत ही प्रभावक कार्य किये है। ऐसे प्राचार्यों में प्राचार्य धरसेन भूतवलि एवं पुष्पदन्त, प्राचार्य कुन्दकुन्द, प्राचार्य मानतुग, प्राचार्य समन्तभद्र, भट्टारक जिन चन्द्र, झानभूषण तथा वर्तमान में प्राचार्य महावीर कीतिजी, प्राचार्य विमल सागरजी के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। . .
प्राचार्य कुथु सागरजी महाराज गणधराचार्य है। वे अहनिश स्वाध्याय एवं तप साधना में लीन रहते हैं । उनका विशाल संध है, उपाध्याय श्री कनक नन्दीजी महाराज जैसे लेखनी के बनी उनके संघ में हैं। यह बहुत ही गौरव की बात है।
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गलधराचार्य श्री ने पहले लविद्यानुवाद ग्रंय का प्रकाशन करावाया था जिसको समाज में मिश्रीत प्रतिक्रिया हुई थी लेकिन जब उसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुप्रा तो किसी प्रकार की आपत्ति नहीं की गयी। "घंटाकर्ण मंत्र कल्पः" उनका चतुर्थ मंत्र शास्त्र का ग्रंथ है जिसके प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य मंत्र शास्त्र का उद्धार करना है, किसी का अहित करना नहीं । प्राचार्य श्री के अनुसार, इस ग्रंथ के मंत्र और मंत्र से प्रनेक प्रकार के कार्य सिद्ध होते हैं । घंटाकर्ण मंत्र को साधना से अनेक प्रकार के विनों का नाश हो जाता है।
मंत्र साधना की विधि, मंत्र सिद्धि के फल प्रादि पर भी प्रथ में विस्तृत प्रकाश डाला गया है और उसे सर्व जनोपयोगी बनाने का प्रयास किया है।
"घंटाकर्ण मंत्र कल्प:" किस प्राचार्य की कृति है तथा वे किस समय के विद्वान थे, इसका प्रस्तुत प्रथ में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारा की ग्रंथ सूचियों में जिन पाण्डुलिपियों का उल्लेख हुपा है ये सब अधिक प्राचीन नहीं है। हो सकता है इस मंत्र की प्राचीन पाण्डुलिपि उपलब्ध नहीं हो सकी हो। इसलिये आचार्य श्री ने प्रारा की पाण्डुलिपि को अपना प्राधार बनाया है।
कुछ भी हो मगधराचार्य श्री ने घंटाकर्ण मंत्र कल्प; का हिन्दी अनुवाद एवं सम्पादन करके एक विलुप्त साहित्य को प्रकाश में लाने का श्लांधनीय प्रयास किया है। साहित्यिक जगत उनका पूर्ण प्राभारी रहेगा।
प्रस्तुत नय का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन कुथ विजय प्रथमाला समिति, के. प्रकाशन संयोजक श्री शांति कुमारजो गंगवाल जयपुर ने कराके एक प्रशस्त कार्य किया है । श्री गंगवालजी ग्रंथमाला के माध्यम से अब तक 15 ग्रयों का प्रकाशन कर चुके हैं। . उनका यह प्रकाशन कार्य आगे बढ़ता रहे, यही मंगल कामना है।
डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल
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* प्रकाशकीय *
मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज के विशाल संघ सहित राजस्थान प्रांत में श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र तिजारा में पधारने के शुभावसर पर श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रंथमाला समिति जयपुर (राजस्थान) द्वारा १६ वें पुष्प के रूप में प्रकाशित घण्टाकर मन्त्र कल्पः ग्रंथ का विमोचन करवाने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।
प्रस्तुत - घण्टाकर्ण मन्त्र कल्पः ग्रंथ में यंत्र मंत्र प्रकाशित किये गये है । इस ग्रंथ. में प्रकाशित यन्त्रों तथा मन्त्रों का संग्रह परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्धु सागरजी महाराज ने अपने अमूल्य समय में से समय निकालकर लोगों के लाभार्थ किया है | इस ग्रन्थ में जो यन्त्र तथा उनके मन्त्र प्रकाशित किये गये है उनके माध्यम से श्रद्धा सहित ग्रन्थ में वरित विधि से उपयोग करने पर अनेकों प्रकार के रोग शोक श्राधिsurfer से भव्य जीव छुटकारा पा सकते है ।
आज प्रत्यक्ष में देखा जाता है कि लोग अनेकों प्रकार के रोग शोक प्रावि व्याधि से पीड़ित है और उनसे छुटकारा पाने को इधर उधर भटकते रहते है फिर भी दुःखों से छुटकारा नहीं मिलता है। लोगों को इन संकटों से लाभ मिले इसी को लय में रखकर गणधराचार्य महाराज ने इस ग्रन्थ का संकलन कर प्रकाशन करवाने की कृपा की है जिसके लिये हम सभी उनके चरण कमलों में शत शत बार नमोस्तु प्रपित करते हैं और आशा करते है कि भविष्य में भी श्राप श्री की लेखनी से इसी प्रकार के अनेकों ग्रंथों का संग्रह होकर प्रकाशन होता रहे, ताकि लोगों को लाभ मिलता रहे।
गणचराचार्य महाराज द्वारा संकलित यन्त्र मन्त्र से सम्बन्धित ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित यह चतुर्थ ग्रन्थ है । इससे पूर्व ( १ ) लघुविधानुवाद ( २ ) श्री चतुर्विंशति तीर्थंकर अनाहत यंत्र मंत्र विधि ( ३ ) श्री भैरव पद्मावती कल्प: ग्रन्थ, प्रकाशित हो चुके है जिनके प्रकाशन से लोगों को मन्त्र यन्त्र सम्बन्धी प्रकाशित सामग्री की जानकारी मिली है और लाभ मिला है। इसके साथ-साथ यन्त्र मन्त्र के ग्रप्रकाशित ग्रन्थों का उद्धार भी हो रहा है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ की प्रस्तावना साहित्य जगत में जानेमाने विद्वान डाक्टर कस्तूरचन्द जी कासलीवाल साहब ने लिखने की कृपा की है। हम डाक्टर साहब को उनके द्वारा दिये इस सहयोग के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद देते हैं और आशा करते हैं कि भविष्य में भी आपका मार्ग दर्शन तथा सहयोग हमें इसी प्रकार प्राप्त होता रहेगा ।"
ग्रन्थ प्रकाशन सर्च को बड़ौत निवासी परम गुरुभक्त श्रीमान श्रशोक कुमार जी जैन ने वहन कर ग्रंथमाला समिति को सहयोग प्रदान किया है। ग्रंथमाला समिति की ओर से आपका बहुत-बहुत आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद देते है। आशा है ग्रंथमाला समितिको भविष्य में भी समय-समय पर प्रापका सहयोग प्राप्त होता रहेगा ।
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ग्रंथ प्रकाशन का कार्य एक कठिन कार्य है जिसमें यन्त्र मात्र सम्बन्धी ग्रंथों का प्रकाशन और भी विकट कार्य है । लेकिन गुरुवों के शुभाशीर्वाद से सब बांधाये दूर होकर कार्य में सफलता प्राप्त हो जाती है जिनको कार्य में पूर्ण निष्ठा संथा गुरुवों के शुभाशीर्वाद में दृढ़ श्रद्धान होता है ।
परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य महाराज के मंगलमय शुभाशीर्वाद से हमने इस ग्रंथ का भी प्रकाशन कार्य प्रारम्भ करवाया और अनेकों प्रकार की पहले से भी • ज्यादा बांधाए थाने के बावजूद भी हमने इस ग्रंथ के प्रकाशन कार्य को पूर्ण कराने में सफलता प्राप्त की है।
ग्रन्थमाला संचालन में सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं का बहुत-बहुत ग्राभारी हूँ कि आप सभी का समय पर कार्य पूरा कराने में मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है । श्री प्रदीप कुमार गंगवाल ने परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्धु सागरजी महाराज के शुभाशीर्वाद से इस कार्य में अत्यधिक परिश्रम किया है। ग्रन्यः सहयोगीगण सर्व श्री • मोतीलाल जी हांडा, श्री लिखमीचन्द जी बख्शी, श्री लल्लूलालजी गोधा, श्री रवि कुमारजी गंगवाल, श्री रमेश चन्दजी जैन, जैन संगीत कोकिलारानी, बहिन श्रीमती कनक प्रभाजी हाडा, श्रीमती मेमदेवी जी गंगवाल आदि का विशेष सहयोग रहा है।
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ग्रन्थ प्रकाशन कार्यो को बहुत ही सावधानी पूर्वक देखा गया है फिर भी कमियों का तथा त्रुटियों का रहना स्वाभाविक है । श्रतः साधुजन, विद्वतेजन तथा पाठकगण त्रुटियों के लिए क्षमा करते हुए शुद्धकर अध्ययन करने का कष्ट करें। साथ ही साथ ग्रंथ के संग्रहकर्ता परम पूज्य श्री १०८ गणषराचार्य कुन्यु सागरजी महाराज को तथां ग्रंथमाला समिति को सूचित करने की कृपा करें ताकि आगामी ग्रन्थों के प्रकाशनों में और अधिक सुधार लाने में हमें आपका सहयोग प्राप्त हो सके।
- अंत में तिजारा अतिशय क्षेत्र पर देवाधिदेव श्री १००८ भगवान् चन्द्रप्रभुजी के चरणों में नतमस्त होकर परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुत्थु सागरजी महाराज को त्रिवार नमोस्तु अर्पित कर यह ग्रंथराज उनके कर कमलों में भेटकर प्रार्थना करता हूँ कि वह इस महत्वपूर्ण ग्रंथराज का विमोचन करने की कृपा करें।
दि० : ३००१-६१
परम गुरुभक्त गुरु उपासक संगीताचार्य प्रकाशन संयोजक शान्ति कुमार गंगवाल
बी. कॉम जयपुर (राजस्थान)
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जीवन-सार क्यों व्यर्थ चिन्ता करते हो ? किससे व्यर्थ धरते हो ? कौन तुम्हें मार
सकता है ? प्रात्मा न पैदा हुई, न मरती है । • जो हुआ वह अच्छा हुआ ! जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है। जो
होगा यह भी अच्छा ही होगा। * .तुम्हारा क्या होगा जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे जो तुमने खो
: दिया ? तुमने क्या पैदा किया था जो नष्ट हो गया ? जो लिया - यहीं से लिया जो दिया यहीं पर दिया; खाली हाथ पाए और खाली . हाथ चल दिए। : : . .. .. .. . .
ओ प्राण तुम्हारा है; कल और किसी का था; परसों किसी और का ... होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हों ? यही प्रसन्नता
तुम्हारे दुःखों का कारण है। • एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण तुम
दरिद्र हो जाते हो.) तेरा-मेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो. विचार से हटा दो। फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हों।
-.--- ---. -
•
म यह शरीर तुम्हारा है और न ही तुम इस शरीर के हो । यह शरीर अग्नि, जल वायु, पृथ्वी और आकाश से बना है और इन्हीं में मिल
...जायेगा।
• तुम अपने आपको परमात्मा के लिए अर्पण कर दो यहो सबसे उत्तम
सहारा है । जो इस सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक इत्यादि से सर्वदा मुक्त रहता है।
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ॐ नमः सिध्देभ्यः ।
श्री महावीराय नमः |
घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
●जैनाचार्य
[ अनुवादक का मंगलाचरण ]
पंचपरमेष्ठी को नमन कर ध्याऊँ जिभावसार, चौदह सौ बावन गणधरों को, नमन करूँ जय बार । आदि महाबीर बिमल गुरु, सम्मति गुरण भण्डार, नमन करू त्रियोग से, मोक्षलक्ष्मी मिल जाय ॥ [ग्रंथ का मंगलाचरण ]
सिद्धि योग ।
देवेन्द्र मुझे
शोध
अध संस्थान
क्रमांक 182
उदयपुर
सर्वारिष्ट निवारणम् ।।
प्ररणम्य श्री जिनाधीश, ऋद्धि-सिद्धि प्रदायकं । घण्टाकर्णस्य कल्पस्य अर्थ :- जिनों में जो आधीश हैं, ऐसे सवें तीर्थंकरों को नमस्कार करके घण्टाकर्ण कल्प की विधि को कहूँगा, जो सर्व प्रकार की ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है भीर सर्व अरिष्ट का निवारण करने वाला है । शुभ कार्य की विधि :--
शुभ कार्य करना हो तो शुभ महिना देखकर उसके शुक्ल पक्ष में भद्रातिथियों को छोड़कर करें ।
उसमें शुक्रवार, सोमवार, बृहस्पतिवार, बुधवार शुभ हैं । तथा नक्षत्रों में रोहिणी, उत्तर भाद्रपद, अश्विनी, उत्तर आषाढ़, उत्तर फाल्गुन शुभ हैं ।
शाक े :--- शंकर, मरूत् (वायु), तिक्षा
योग :- शुभयोग, सिद्धियोग, श्रीतच्छ, श्रानंद, छत्रयोग,
श्रमृत
(राज.)x X
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घण्टाकर्ण मंत्र करूपः
... शुभ दिन :-.-रविवार हस्त नक्षत्र, रविवार मूल नक्षत्र, रविवार पुष्य नक्षत्र ... लेना चाहिए।
शुभ शकुन :-~-शुभ चंद्रमा का बल देखना, स्वयं को देखना अर्थात् अपने ऊपर चंद्रमा का बल देखना, इष्ट को देखना, कार्य वाले को देखना, प्रति जागती अग्नि का वास ।
. इतने योगों से स्थापना करना । ये सभी शुभ कर्म में देखना । . भद्रा, पूर्ण तिथियां :--
भद्रा
१.२
पूर्ण+
उच्चाटन कर्म तथा मारण कर्म में श्रेष्ठ मंत्री, मंत्रसाधक कृष्णपक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या को देखें । और बारों में रविवार, शनिवार, मंगलवार को लेवें तथा मृत्यु योग व काल योग लेवें ।
रात्रि में साधना करना ।
स्थान :--अच्छे बगीचे में, कूप्रां, सरोवर अथवा नदी के किनारे पर मत्रसाधना करना । अच्छे छायादार वृक्ष के नोचे और एकान्त में या स्वयं के घर में एकान्त-स्थान में मंत्र साधना करना । मंत्र साधन-विधि :--
प्रथम भूमि शुद्धि करें। उस समय निम्नोक्त मंत्र पढ़ेंॐ ह्रीं श्रीं भूम्यादि देवताय नमः।
इस मंत्र को सात बार पढ़कर भूमि पर जल के छींटे देवें । इसी मंत्र से जलगंधादि समर्पण करें ।
ॐ ह्रीं श्रीं भूम्यादि वेवताय पत्र प्रागच्छ अत्र तिष्ठ तिष्ठ, अत्र मम सनिहितो भव वषट् सन्निधिकरणं, इवं जलं, गंध, अक्षत, पुष्पं चरू', दीपं, धूपं, फलं, स्वस्तिकं च यज्ञभागं च यजामहे अध्यं समर्पयामि स्वाहा ।
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्प:
भूमि शुद्धि में-गोबर और मिट्टी से भूमि को लिपे फिर उपरोक्त मंत्र से भूमि पूजा करें। स्नान करने का मंत्र :---
ॐ ह्रीं क्लीं शुद्ध लेन स्नानं करोमि स्वाहा। इसके बाद शुद्धवस्त्र पहिनकर यह मंत्र पढ़ें
ॐ ह्रीं क्लीं शुद्धवस्त्रपरिधानोपधारयामि स्वाहा । . मंत्र विधि में नियम :-~
एक समय भोजन करें, ब्रह्मचर्य का पालन करें, भूमिशयन करें, मंत्र साधना पूर्ण होने तक पाव में जूते, चप्पल प्रादि का उपयोग नहीं करें, लोभकषाय का त्याग करें, झूठ बोलने का त्याग करें, क्रोध का त्याग कर हित-मित-प्रिय शब्द मृदुता से बोलें, आहार विहारादि प्रत्येक क्लिया में शुद्धता रखें, अष्टपल्लादि का ध्यान रखते हुए मंत्र जाप्य करें।
___ मंत्र का शुद्ध उच्चारण करते हुए मंत्रजाप्य करें। जाप्य मानसिक, वाचनिक और उपांसुरूप से करें।
मानसिक जाप्य :--मंत्र का मन ही मन में जाप्य करना । वाचनिक जाप्य :-मंत्र का उच्चारण करते हुए जाप्य करना।
उपांसु जाध्य :--मंत्र का उच्चारण तो न हो परन्तु होंठ हिलते हुए उच्चारण करना । इसमें जोर से उच्चारण नहीं होता मात्र होंठ हिलते रहते हैं।
.. घण्टाकर्ण का मूलमंत्र ॐ घण्टाकर्ण महावीर, सर्वव्याधि विनाशक । .. विस्फोटक भयं प्राप्ती, रक्ष रक्ष महाबल ॥१॥ यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः । रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, बात-पित्त-कफोद्भवाः ॥२॥ तय राजभयं नास्ति, यांति कर्णे जपाक्षयं ।। शाकिनीभूतवेताला, राक्षसां च प्रभवंतिनः ।।३।।
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४ ]
घण्टाक मंत्र कल्पः
तस्य
न सर्पेण
- नाकाले मरणं अग्निश्चोरभयं नास्ति, घण्टाकर्णी
नाकाले मरणं तत् नच सर्पेण दृष्यते अग्नि चोरभयं नास्ति श्रीं क्लीं घंटाकर्णो नमोस्तुतेः ठः ठः ठः स्वाहा।
ॐ ह्रीं
घंटाकर्ण महावीर सर्व व्याधि विनाशकः, विस्फोटकभयं प्राप्त रक्ष रक्ष महाबल ।
हीँ ॐ ह्रीँ
हीँ
फै
ॐ
लूँ हाँ लूँ.
दंस्यते । नमोस्तुते ||४||
[ यंत्र चित्र नं० [१]
"bal finte en pat
रोगास्तत्र प्रणस्यतिः वात पित्त कफोद्भवाः। यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितो द्वार पतिभिः,
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं घण्टाकर्णे ठः ठः ठः स्वाहा । यह घण्टाकर्ण का मूलमंत्र है । ( यंत्र चित्र नं० १ देखें)
दुष्टदेव व शत्रु का भयनिवारण विधि
उपरोक्त घण्टाकर्ण मूलमंत्र का ४२ दिन में ३३००० जाप्य विधिपूर्वक करें । १०८ बार निश्य करें ।
सरसों, काली मिर्च से मंत्र का दशांश होम करें, तो दुष्टदेव व शत्रु का भय निवारण होता हैं ।
ॐघंटाकर्णी महावीर, सर्वव्याधि विनाशकः,
ना कालमरणं तस्याच सपेणहस्ते अपने चोरभयं नास्ति ।. ॐ ह्रीं श्रीं क्लीघटा कण नमोस्तुतेः ठः ठः ठः स्वाहा ।
विस्फोटक भयं पाने रसरस महाबल ।
शव नारनिभ्यो नमः
श्री नमः
हाँ ह्रीं हूँ नमः
-
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[ यंत्र चित्र नं०.२.]
[ ५
रोगास्तत्र प्रणस्यति वातपित्तकफोड़ा। यत्रत्वं तिष्ठते देव, लिखितो सर पंक्ति मि
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घण्टाकणं मंत्र कल्पः
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यंत्र बनाने की विधि :--
पुरूषाकार एक पुतला बनावें, उस पुतले के पेट पर बारह कोटे निकाले, उन कोटों में यह मंत्र लिखें--
"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व दुष्ट नाशनेभ्यो नमः"
कंठ पर--"श्रीं नमः, दाहिनी भूजा पर-"सर्व ह्रीं नमः", बाई भूजा पर"शत्रुनाशनेभ्यो नमः", दाहिने पांव पर-"हां-ही-हूँ नमः", बाएं पांव पर "हां, ही, हूँ नमः' लिखें । चारों दिशाओं में घण्टाकर्ण मूलमंत्र के चारों श्लोकों को. लिखें।
. नारियल की गिरी, छुहारा, किसमिश से होम करें। उस समय यंत्र अपने पास रखें।
यंत्र के प्रभाव से दुष्टकर्म, दुष्टदेव, परचक्र, राजशत्रु और सर्व उपद्रव नष्ट होते हैं । कल्प वृक्ष के समान फल देता है । ऋद्धि, सिद्धि, लक्ष्मी बढ़ती हैं । इहलोक के सम्पूर्ण सुख की प्राप्ति होती है।
{ यंत्र चित्र नं० २ देखें )
लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र षट्कोण बनाने, षट्कोण में ये मंत्र अक्षर लिखें
___ ॐ ह्रीं, हां, ह्रीं ह्रौं, नमः" इसके बाद ऊपर एक वलय खीचें, उसके ऊपर घण्टाकर्ण मूलमंत्र वेष्टित करें। उसके बान साधन करें।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए पूर्व दिशा में मुख करके, सफेद वस्त्र पहन कर सफेद प्रासन पर बैठकर, सफेद माला से एकाग्रचित्त होकर संयम से रहते हुए जाप्य करें।
जाप्य १,२५००० बार ७२ दिन में करें अर्थात् सवालक्ष जाप्य करें।
एकान्त में एक समय गेहूं के सामान से बना भोजन करें। किसमिश, . चिरोंजी, बादाम, छुहारा, खोपरा का होम करें ।
जलगंधाक्षत पुष्पादि से पूजन करें। उस समय यंत्र अपने पास में रखें।
फल :--एक महिने अथवा दो महिने में फल अवश्य मिलेगा अर्थात् लक्ष्मी ' की प्राप्ति होती है, कल्याण होता है, यश मिलेगा,.. सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है, प्रानन्द ही प्रानन्द प्राप्त होता है।
( यंत्र चित्र नं. ३ -देखें.)
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
नोट :-षट्कोण यंत्र में एक दूसरा मंत्र हस्तलिखित पुस्तक में प्राप्त होता है, वह मंत्र इस प्रकार है
"ॐ ह्रां ह्रीं है. ह्रौं ह्रः नमः ।"
...
..
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दोस्वाहा ताडोबा
[त्र चित्र नं. ३
भूत प्रेत विनाशक विधि मंत्र :--ॐ नमो हनमंत देव, पवनंजय का पुत्र, राजा रामचंद्र का सेवक, सीतादेवी का सहायक, बैसे रामचंद्र का कार्य करो, वैसे हमारा भी करो, अमुकी
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दण्टाकरण मंत्र कल्पः
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अमुक्या का छेड़ा त्रुटी भस्म करो नहीं करो, तो दुहाई माता सीता की। सत्य नांव प्रादेश गुरु का।
विधि :----मंगलबार तथा शनिवार को प्रर्ध रात्रि के समय एक मति हनुमानजी की लिखें । उस मूर्ति के मस्तक पर यंत्र लिखें, मूर्ति के ऊपर यंत्र रखें ।
१०८. चमेली के सुगंधित पुष्प से जाप्य करें। एक बार मंत्र पढे और एक .. पुष्प रखें। ऐसे १०८ पुष्प से जाप्य करना।
फिर कोयले की सिगडी जो जलती हुई हो तैयार रखें । जो यंत्र तैयार . किया है, उसको ऊपर की बाधा वाले को दिखावें । ऊपर बांधा उसके शारीर में आएगी, यंत्र गरम करें, फिर रोगों को दिखावें, रोगी चिल्लाने लगेगा उस यंत्र को देखे. गा तो । उस यंत्र को सिगड़ी के ऊपर ऊंचे से संपावें, तब ऊपर की बाधा रोगी को छोड़ देगी । अगर रोगी को नहीं छोड़े तो उस यंत्र को प्रांग में जला देखें तो शीघ्र ही ऊपर की बाधा दूर होगी . ..
... वशीकरण मंत्र विधि :
प्रथम घण्टाकरणं मूलमंत्र का जाप्य करें। उस समय मुह उत्तर दिशा की प्रोर हो, लाल वस्त्र पहनें, लाल माला से जाप करें, लाल प्रासन पर बैठकर करें, त्रिकाल करें । यह.४२ दिन तक करें । २२५००० इतना जाप्य करें। १४०० प्रातः काल, १३०० मध्यान्ह काल, १३५० अर्ध रात्रि में । कुल ४०५०. जाप्य करें।
यंत्र लिखके बाकी विधि पहले के समान जानना, ६०१० यंत्र लिखना। यंत्र लिखने कि विधि :
एक सौ एक कोठे का एक यंत्र लिखें। प्राडी लाईन में १२ और खडी लाईन में ११ कोणे लिखें, उन सब कोरों में क्रमशः घण्टाकर्ण मूल मत्र लिखें---
फिर दीप धूप नैवेद्य फलादिक से . यंत्र की पूजा करें। भ्रष्ट द्रव्य से पूजा ... करें । नित्य ही करते रहे, जब तक जाप्य पूरा न होवें । जाप्य पूरा होने पर लाल चंदन, मिरच में गाय का घी मिलाकर हवन करें, जिसका नाम स्मरण करें वह वश हो पायेगा । जप ध्यानादि शांति से और सावधानी से करें। ...
(यंत्र चित्र नं. ४ देखें)- ..
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घण्टाकर्ण मंत्र करूपः
घंटाकर्ण महावीर स व E खि क्ष र पंक्ति भी रो गा स्त ठर्णो ज पा क्ष यं शा कि नी श्र णंत स्य न च स
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[ यंत्र चित्र नं० ४ ]
निषेध कर्म विधि
प्रथम मूल मंत्र का जाप करें। उस समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह हो,
काले कपड़े पहने, काली माला हो, काला हो भासन हो इस विधि से जाप्य करें।
faशेष कोष्टक में देखें ।
अप संख्या - १,७०,००० (एक लाख सत्तर हजार ) होना चाहिए ।
यह जाप ४२ दिन में पूरा करना चाहिए ।
प्रतिदिन जाप की संख्या लगभग ४५२६ होना चाहिए। प्रातः काल ११३१ जाप्य, मध्यान्ह में ११३१ जाप्य, सांय काल में ११३१ जाप्य और अर्ध रात्रि में ११३१ जाप करें। इस प्रकार ४२ दिन तक करें ।
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१०]
. घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
जाप्य करके हवन करें। वद प्रतिक्षित करें समय पूरा होने पर दर्शाश आहुति देखें ।
सामग्री :
हरताल, मनशील, नीम की पत्ति, मिरच और सरसों का तेल, सब मिलाकर हवन करना, देवदत्त का नाम लेते जाना । मीठा भोजन करें, नमक रहित खावें भूमिशयन करें ।
इस विधि से देवदत्त का ( जिसका नाम लेंगे उसका ) निषेध होता है । उच्चाटन विधि
सर्व प्रथम घण्टा मूलमंत्र का जाप्य करें। उस समय मुंह पश्चिम दिशा की ओर हो, पीले वस्त्र पहने हो, पीले रंग को ही माला हो इस विधि से ४२ दिन तक ४४,००० जाप्य करना चाहिये ।
नित्य जाप्य लगभग १००० तक कम से कम हो। वहां २५० प्रातः काल में, रात्रि में २५० इस प्रकार विभाग
मध्यान्ह में २५०, सायं काल को २५० व अर्ध कर लेवें ।
जितने दिन जाप्य करना है, उतने दिन नियम व क्रम से करें । प्रत्येक दिन नित्य पूजा करें, भ्रष्ट द्रव्य से पूजा करें ।
सामग्री :---
सरसों, बिहडा, कड़वा तेल ( सरसों का तेल ) को मिलाकर देवदत्त ( जिसका उच्चाटन करना हो, उस) का नाम लेकर हवन करें । देवदत्त का नाम लेते जायें और हवन में सामग्री डालते जावें ।
ऐसा करने पर देवदत्त को विघ्न व विग्रह होते हैं ।
इस प्रकार देवदत्त का उच्चाटन होता है ।
पुत्र प्राप्ति विधि
पहले घण्टाकर्ण मूलमंत्र का जाप्य करें ।
उस समय वायव्य कोण में मुह हो उस समय पंचामृत का हवन करें ।
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
_जाप्य संख्या--२१,००० जाप्य करें। यह जाप्य २१ दिन में पूरा करें । प्रतिदिन १००० जाध्य करें ।
सामग्री :--".
[ ११
प्रातः काल में २५०, मध्यान्ह में २५०, सायं काल में २५० तथा अर्ध रात्रि में २५० इस प्रकार प्रत्येक दिन का विभाग कर लेवें ।
जाई के फूलों से जाप्य करें
इस प्रकार दस महिने तक मंत्र साधन करें। ऐसा करने पर अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होती है ।
अन्य लाभः :--
: राज्य हाथ से गया हो तो पुनः प्राप्ति होती है । भूमि हाथ से गई हो तो पुनः प्राप्त होती है । सौभाग्य प्राप्ति होती है ।
|
बद्धि बढने की विधि
पहले घण्टाकर्ण मूलमंत्र का जाप्य करें। यह जाप्य १०,००० की संख्या में करें । २५ दिन जाप्य करने से लाभ मिलेगा ।
नित्य प्रति ४३२ जाप्य करना चाहिए। प्रातः १०८, मध्यान्ह १०८, सायंकाल को १०८ तथा अर्ध रात्रि में १०८ इस प्रकार बाध्यों का विभाग करें । इस प्रकार जाप्य देने से व उसके बाद हवन करने से बुद्धि बढ़ती है, बुद्धि अच्छी होती है, राज्यभय नष्ट होता है, प्रताप बढ़ता है दुर्बुद्धि का नाश होता है, सुख की प्राप्ति होती है ।
गर्भवती की पीड़ानिवारक विधि
मूल घण्टाकर्ण मंत्र को ७ बार पढ़कर निम्नोक्त वृक्षों के पत्ते लेवेंचम्पा का पत्ता, चमेली का पत्ता, मोगरा का पत्ता, नारंगी का पत्ता, नीम का पत्ता, लाल कनेर का पत्ता, गुलाब का पत्ता अथवा सफेद कनेर का पता । २६ कूत्रों का जल लायें ।
मिट्टी के ५ घडें लावें । इन पर ह्रीं को मध्य में लिखें, रों श्री को भी लिखें । सात ठिपके भी लगायें। पंचरंगी धागे से घड़ों को बांधे ।
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१२.
.
घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
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मंत्र के उच्चारण के साथ सात तरह के पत्ते लगावें, फिर सात बार चावलों का मण्डल बनावें, घडों को सम्भाल कर मण्डल पर रखें। वहाँ चौमुखा दीपक जलाकर रखें। .. सामग्री ---
गिरी, छहारा, चिरोंजी, बादाम, अवीर, पिस्ता, जौ, तिल, उडद, शक्कर, चावल, ५ प्रकार के पत्तों से हवन करें।
मंत्र को पढता जावें और फिर जाकर गोडा, सुधारणा, पानी घडे में ले आवें--यह विधि सात दिन तक करें।
फिर स्त्री को स्नान करावें, नीले रंग के धागे को मंत्रित करके उसमें सात गठान लगावें, उसे स्त्री के गले में बांध देखें तो स्त्री को प्रसवपीड़ा दूर होती है ।
. मतवत्सा दोष मिटाने की विधि
प्रथम घण्टाकर्ण मूल मंत्र को १०८ बार पढ़ें। इससे दोष शुद्ध होता है । अन्य विधि इस प्रकार है--
३२ का पानी मंगावें, . वृक्षों के पत्ते मंगावें, ६ अनार के, ६ अंजीर के, ६ फालसा के, ६ प्राडु . के, अतिर्म के, ६ लाल कनेर के, ६ सफेद कनेर के, ६ सेवंति के, ६ नारंगी के इन जातियों के पत्ते मंगावें।
५ जाति के वृक्षों के पुष्प मंगावें। चम्पा, चमेली, कदंब, अनार और जुई के पुष्प मंगावें।
. जहाँ ५ और रास्ता जाता हो, वहां मंत्र पढ़ें। . . . मंत्र पढ़कर स्त्री को स्नान करावें, यंत्र को स्त्री के गले में बांध देखें।
हवन करें। सामग्रो ---
चिरौंजी, बादाम, गिरी, तिल, उडद, जी और घी इतनी वस्तुओं से इवन करें।
- ऐसा करने पर मृतकत्सा का दोष नष्ट होता है।
D:--
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घटाकर मंत्र कल्पः
राजावशीकरण विधि
हाथी का एक चित्र बनाकर उसके पीठ पर घण्टाकर्ण मूल मंत्र लिखें | चित्र पर यक्ष कर्दम अथवा प्रष्ट गंध से लिखें ।
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[ १३
सफेद वस्त्र, सफेद आसन और सफेद माला से ३,००००० ( तोन लाख ) जाप करें | जाय घण्टाकर्ण मूल मंत्र का हो। फिर दशांस होम करें ।
[ यंत्र चित्र नं० ५ ]
अ गंधादि से यंत्र की पूजा करें। यंत्र को अपने पास रखें। यंत्र पर राजा का नाम लिखें । राजा वश होता है और सदा ग्रापके साथ रहता है । राजा श्रापका कार्य करता रहेगा । भाग्य की वृद्धि होगी, यश फैलेगा, लक्ष्मी बढ़ेगी, क्रान्ति बढ़ेगी कोई विपरीत नहीं दिखेगा, सर्वत्र विजय ही विजय हो ।
(यंत्र चित्र नं० ५ देखें)
सर्व कार्य सिद्धि की विधि
मूल मंत्र घण्टाकर का स्मरण करने पर परिवार का रोग नष्ट होता है: मृगी रोग नष्ट होता है ।
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इस मंत्र का रास्ते में स्मरण करने पर चोरभय नष्ट होता है ।
मंत्र से मंत्रित धागा बांधने पर एकान्तर, वेलाज्वर, तृतीय ज्वर आदि सभी ज्वर नष्ट होते हैं । • डोरे में महान मंत्र पूर्वक बांधकर शरीर के श्रेष्ठ अवयवों में बातें तो चौरासी प्रकार के बायु रोग नष्ट होते हैं ।
मंत्र पढ़कर झाड़ा देने पर भूत प्रेतादिक की बाधाएं नष्ट होती हैं । मंत्र ७ बार, २१ बार या १०८ बार पढ़ें ।
यंत्र लिखने की विधि
बारह खड़े और बारह भाड़े कोठे लिखें । उन कोठे में क्रमशः घण्टाकर्ण मूल मंत्र लिखें । जब सब कोठे भर जाय तब यंत्र के बाहरी भाग में 'ही' लिखें ।
घण्ट | करण मंत्र कल्पः
---
र्ण महावीर स ब र पंक्ति भी रोंगा स्त
ठर्णो ज या क्ष यं शा कि नी थ ७ णं तस्य न च स में
ॐ ह्रीं श्रीं क यह एक स्तु ते 49
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[ यंत्र चित्र नं ६ ]
प्रणस्यात वात पि विनाशक विस्फोटक भ
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.घण्टाकणं मंत्र कल्पः
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इस यंत्र को सुगंधित द्रव्यों से लिखें, और लिखकर अपने पास में रखें। तब सर्व प्रकार का सुस्ल उत्पन्न होता है । 'शत्रु का दमन होता है, सर्व विघ्नों का निवारण होता है, अन्न की प्राप्ति होती है ।
पंचामत से हवन करें। उसके दही, घी, शक्कर, छुहारा, दुग्ध से हवन करके पास में यंत्र रखते जावें।
..... (यंत्र चित्र नं. ६ देखें) . ..
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महावीरदेवदत्तः सर्बोपद्रव पायॐ . कुँ स्वाहा।
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________________
घण्टाकर्ण मंत्र कल्प: --
घण्टाकर्ण यंत्र की विधि प्रथम अष्ट गंध से प्रष्ट दल (कमल) बनावें, फिर घण्टाकर्ण: मूल मंत्र का जाप्य करें। फिर घंटे को बजावे, सर्व उपद्रव की शांति होती है, सर्व चतुष्पद (पशुओं) के रोगों का नाश होता है । घोड़ा, बैल आदि के रोगों की सर्व शांति होती है।
जहां तक घंटे की ध्वनि जाती है, वहां तक के सर्व रोग नष्ट होते हैं । वहां सर्व शांति होती है, ऋद्धि, सिद्धि की वृद्धि, सर्व सुख की प्राप्ति होती है। .
... इति महावीराय नमः । .. (यंत्र चित्र नं. ७ देखे)
. टाको हावीर दर्ज प्रावि बिगाहा॥ - विस्फोटकभयं प्राप्ने रक्ष रक्ष महाबल॥॥
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HH .
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नाकाले मरणं तस्यानच सण रयते। ... अग्निचौर मयं नासितःॐघटाकर्णोनमोस्तुतेठ ठ ठाझrol
रोगासन प्रणस्यतिः वात पित्त कफोनवास पालतिष्ठतेदेव लिखिताक्षर क्तिभिः।
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NRHOEAntenticate यंत्र चित्र न ]
-
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्प:
शातिनिधि अन्य यंत्र विधि :---
प्रथम घण्टाकर्ण मूल मंत्र का प्राकार लिखें। ऊपर बीच में 'ॐ' लिखें, फिर घण्टाकर्ण मूल मंत्र से उसे वेष्टित करें, चौकोर आकार लिखें, मंत्र अष्टगंध से लिखें। ... अष्टोपचारी पूजा करें। फिर दशांस होम करें।
यंत्र शुद्ध भोज़ पत्र पर डाभ की कलम से लिखें । या चान्दी सोना मिश्रित ताम्र पत्र पर लिखें।
यंत्र पास में रखें।. ..
. इससे धन, धान्य, लक्ष्मी की वृद्धि होती है, पशुओं के रोग नष्ट होते हैं । गले में बांधे तो सर्व शांति होती है।
.... (यंत्र मिश्र नं. देखें)
अन्य विधि नं. १ - इस यंत्र को रविवार के दिन भोज पत्र के ऊपर अष्टगंध से लिखकर : मुगुल खेकर पवित्रता से रहें तथा श्वेत वस्त्र, श्वेत प्रासन, श्वेत माला रखें, उस
समय मुह.पूर्व दिशा की ओर हो ऐसा करके मूलमंत्र का ११००० जाप्य : तीन दिन के भीतर करें।
तीन दिन तक एकासन करें, निरन्तर दोप, धूप, फल पुष्प, नैवेद्य आदि से पूजा करे । . .. . . .
. सामग्री
किसमिश, चिरौंजी, बादाम, मिश्री प्रादि. से. हवन करें। ..
यंत्र को चांदी के अन्दर मढावें, मस्तक वा गले में बांधे, सर्व रोग नष्ट होते हैं। भूत-प्रेतादिक का उपद्रव शांत होता है । चित्तनम नष्ट होता है, सुख उत्पन्न होता हैं । यह अनुभूत यंत्र है। प्रत्यक्ष हैं।...
(यंत्र चित्र नं. देखें।)
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
अन्य विधि नं. २ इस यंत्र को रविवार के दिन भोज पत्र पर अष्टगंध से लिखकर शुद्ध वस्त्र · पहन कर, शुद्ध भूमि पर बैठकर लिखें ।
मुगुल का दशांश होम करें, दीप, धूप नैवेद्यादिक से पूजा करें। यंत्र चांदी या सोने के ताबीज में डालकर गले में बांधे ।
शाकिनी, डाकिनी, भूत प्रेतादि का निवारण होता है। सर्व रोगों का निवारण होता है, छोटे बच्चों के दृष्टिदोष का निवारण होता है, इससे कभी भी अकाल मौत नहीं होती।
(यंत्र चित्र नं. देखें।
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[ यंत्र चित्र नं. ६ }
अन्य विधि नं. ३ यंत्र को भोजपत्र पर केशर कपर से लिखें, यंत्र को लिखते समय पवित्रता रखें शुद्धि भूमि पर बैठकर यंत्र लिखें।
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________________
मौन सहित तीन दिन उपवास करें ।
१६००० घण्टाकर्ण मूलमंत्र का जाप्य करें ।
जाय सफेद चन्दन की माला से करें, उस समय सफेद ही वस्त्रादि हों । जल संधादि से यंत्र की पूजा करें। पूजा के बाद दशांश होम करें । सभी कार्यों के समय यंत्र अपने पास में रखें ।
ऐसा करने पर मनोवांछित कार्य की सिद्धि होती है ।
( यंत्र चित्र नं० e
देखें)
घण्टाक मंत्र करुपः
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ई उ ऊ ऋ ॠ
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को सिद्धि होती है।
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[ यंत्र भित्र नं० म ] अन्य विधि नं. ४
"ॐ ह्रीं श्रीं क्ली" घण्टाकर्णो नमोस्तुते ठः ठः स्वाहा "
इस यंत्र का १,००००० (एक लक्ष्य ) जाप करें तो मनोवांछित सर्व कार्यों
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-
२०]
घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
___ जाप्य के समय सफेद वस्त्र हो, एकाग्रता हो व स्थिर आसन लगाकर जाप्य करें ।
सर्व योग निमित्त मंत्र विधि उपरोक्त मंत्र को लाल वस्त्र, लाल माला, लाल प्रासन से पूर्व दिशा में मुह करके दस हजार गुगुल की गोलो करके मंत्र पढ़ते जायें और मंत्र के उच्चारण के साथ एक गोली हवन में डालें यह विधि सात दिन तक करें ।
फिर दिन में एक बार भोजन करके शांति कार्यों में दिन पूरा करें। इन दिनों रात्रि में भूमिशयन करें ।
--
-
-
--
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हः पः क्षों क्षी क्षीं हं| सः
आ ३०१६ अपि ३६क्षि * सा| २०४४ सि |८२४| प उअ सिआ उ सन आ ३२१४ उ २०२४ स्वाद सि १८२६ सा ४०/१७ हा मन अह ही हूं ह्रीं हां न
------
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[ यंत्र चित्र नं.
]
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घण्टाकराई मंत्र कल्पः
नित्य १०८ बार मंत्र का जाप करता जायें; ऐसा करने पर सर्व व्याधित सर्वे रोग, क्लेश, संताप समाप्त होते हैं।
मंत्र का जाप्य २१ बार भी कर सकते हैं। मंत्र से मंत्रित शुद्ध जल रोगिली को पिलावें, तो गर्भ को पोड़ा नष्ट होती है। इस यंत्र को घोड़ा या अन्य पशु को बांधे तो रोग नष्ट होते हैं।
इस यंत्र को लिखकर स्त्री के गले में बाँधे तो स्त्री के शाकिनो, डाकिनी । दोषों से निवृत्ति होती है ।
इसका नित्य त्रिकाल १०८ बार जाप करें तो सर्व सुख उपजे; धनं, धान्य यंतरादिक को वृद्धि हो, इस प्रकार इस घण्टाकर्ण यंत्र के गुरा जानो।
यंत्र चित्र नं० ६ ब देखें .
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(यंत्र चित्रनं० १०॥
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२२ ]
अन्य विधि नं० ५
इस यंत्र को भोज पत्र पर भ्रष्ट गंध से लिखकर अपने पास रखें। मूलमंत्र घण्टाकर्ण का जाप करें तो सर्वकार्यो की सिद्धि होती है । मनोवांछित फल मिलेगा ।
घण्टाकर्ण मंत्र करुपः
यंत्र को सुगंधित पदार्थों से लिखना चाहिए। यंत्र अनार या सोने की कलम से लिखें !
यंत्र लिखते समय मौन रहें । यंत्र लिखते समय शुद्ध वस्त्र पहने रहें । यंत्र लिखते समय भूमि की शुद्धता हो, त्रियोग शुद्धि पूर्वक यंत्र लिखें ।
सच्चे मन से मूलमंत्र का जाप्य करें, सर्व सुख होता है । ( यंत्र चित्र नं १० देखें)
५५ ३०
१६ सा १८ ३६
९० ४४ उ २२ २४
८५ अ सि आ उ सा
५ ३२ १४ सि २० ३४
२८ २६ आ ४० ६
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[ यंत्र चित्र नं० ११ अ J
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घण्टाकरण मंत्र कल्पः
[ २३
घण्टाकर्ण मरिणभद्र यंत्र यह घण्टाकर्ण मणिभद्र यंत्र है, इस यंत्र को एकग्रता पूर्वक चांदी के पत्रे पर खुदवा कर इसकी प्राण प्रतिष्ठा करें ।
फिर यंत्र के सामने बैठकर नित्य ही इसका जाप्य करें। यंत्र का पंचामृत से अभिषेक करें । फिर यंत्र की दीप धूपादि से पूजा करें।
यंत्र का ध्यान करें तो सर्व प्रकार की प्राधि, व्याधि रोग, उपसर्ग, उपद्रव, व्यंतरादिक बाधा दूर होती है । घर धन धान्य से पूर्ण होता है, शत्रु चरणों में पड़ा रहे, किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होता, साधक देवों के समान सुख भोगे, निःसंतान को संतान प्राप्ति होती है, मृतवत्सा दोष दूर होता है, अभागी सौभाग्यवती होती है, मूर्ख ज्ञानवान होता है ।
हः | १८/३६
गाआअ.
{ यंत्र चित्र नं० ११.ब]
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________________
२४ ]
यंत्र का अभिषेक पीने से सर्व रोग शांत होते हैं ।
यंत्र की आराधना शुद्ध हो गई हो तो घण्टाकर यक्ष का साक्षात् दर्शन
भी होता है ।
यह यंत्र बहुत प्रभावकारी है ।
सिद्धि सावधानीपूर्वक करें, साधक की प्रत्येक इच्छा की पूर्ति होती है । साधक कोई खराब पाप उपार्जन करने वाली इच्छा न करें ।
( यत्र चित्र नं० ११ अब देखें)
६
१५. ८
३ ४
क्लीँ
sure मंत्र कल्प
१२
१५ ८३४
टाकर्णो
यं नास्ति राज भयं नास्ति याति कर्णा
विस्फोटक भयं प्राप्त रक्ष रक्षा
ठूः स्वाहा ।
अपाक्षय शाकिनी भूताला राक्षसा प्रभवति रक्ष महाबलयत्र लिखित:
खोर नमोस्तुते ठ: ठ:
ॐ
६ ७/२ १५ ८ ३/४
Sim
p
이과의원
Crea
नमो
छोटा कर्णा
६७२ १६५ ८ १८३१४
[ यंत्र चित्र नं० १२ 1.
- महावास व्याधि
रपंक्तिभि रोगा
रोगास्तत्र
तस्य न
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१५
८.३४
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________________
मार्ग
quered मंत्र कल्पः
अन्य विधि नं.
६.
इस यंत्र को अष्टगंध से रविवार के दिन भोजपत्र पर लिखकर चांदी या सोने के ताबीज में डालकर मस्तक पर रखें ।
इसे धूप से खेवें । राजमान मिलेगा, सर्वत्र यश होता है, लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं, सर्वकार्य की सिद्धि होती है ।
इस विधि में घण्टाकर्ण मूलमंत्र का प्रथम जाप करें । आसन, ध्यान लगाकर एकाग्रता से जाप करें ।
सर्वत्र शांति होगी ।
(यंत्र चित्र नं. १२ देखें)
अन्य विधि नं. ७
२०३२
Lone
[ २५
क्रमांक
M
(राज.) x 1
'उदरापुर
ture मूलमंत्र का रवि या पुष्य नक्षत्र या रवि मूल नक्षत्र में या किसी शुभ दिन में १२५०० ( साढ़े बारह हजार ) जाप्य करें । यह १४ या २१ दिन मैं पूरा करें।
उस समय वस्त्र शुद्ध हों, महावीर प्रभू के सामने दीप धूप सहित पाठ प्रकार के धान्यों के अलग-प्रसंग ढेर लगाकर एकासन करें, ब्रह्मचर्य का पालन करें। इस मंत्र को तीनों काल में पढ़ने से मृगी रोग शांत होता है। घर में इस रोग का प्रवेश हो नहीं होगा । ....
सोते समय इसे तीन बार पढ़कर तीन बार ताली बजाकर सोये तो सर्पभय, बोरभय, निभय और जलभय इत्यादि भय नहीं होते हैं ।
अछूते पानी से २१ बार इस मंत्र को मंत्रित करें और उस पानी के छींटे देवें तो अबु जाती है ।
मंत्र को लिखकर घंटे में बांधे और घंटा बजाने पर उसकी भावाज जहाँजहां जाएं वहाँ वहाँ के उपद्रव शांत होते हैं ।
कन्या कत्रीत सूत्र में ७ गांठें लगावें धौर २१ बार इसे पढ़ता जाए, इस सूत्र को बच्चे के गले में बांधे तो नजर नहीं लगे ।
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२६ ]
घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
उसी सूत्र को २१ बार मंत्रित कर धूप देवें और हाथ में बांधे तो एकान्तरा ज्वर का नाश होता है ।
- (यंत्र चित्र नं. १३ देखें )
.
दाको महावीर सर्वव्यांचा | भाकाले मानव सण जिना विस्फोटकभयंप्राप्स
राय
अग्न
सनराजा
सतिनः।
----
भयनानिए
-
...
स्तियांतिक
सदाभी चं रक्षारक्षमहाबल । यत्रवतिष्ठतदेवा लिखितोक्षार
श्वेताला
RLAYERM
teevry
AR
RYINonpatta
यंत्र चित्र न. १३ ]
अन्य विधि नं.८ दोवालो को रात में या शुभ मुहूर्त में मंत्र जाप्य प्रारंभ कर भगवान महाबोर के सामने ब्रह्मचर्य पालन करते हुए पूर्वोक्त विधि के अनुसार १२ दिन में १२५०० जाप्य पूरा करें।
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घण्टाकर मंत्र कल्प:
1
अं
घंटाकर्णी महावीर देवदत्त . कं स्यसर्वोपद्रवक्षयं ।
कुरूकुरूस्वाहा
न
[ यंत्र चित्र नं. १४ ] बाद में गुगुल ढाई पाव, लाल चंदन, घृत, बिनोला (कपास के बीज तिल, राई, सरसों, दूध, दही, गुड़, लाल कनेर के फूल इन चीजों को मिलाकर सारी बारह हजार गोली बनाना, फिर एकेक करके एकेक मंत्र के साथ अग्नि में होम करें---इस प्रकार मंत्र का दशांश होम करें तब मंत्र सिद्ध होता है । नित्य देव पूजा करना, माला चंदन की होनी चाहिए । फल
राजद्वार में जाते समय मंत्र को तीन बार पढ़कर मुख पर हाथ फेरें, राज । सभा वश में होती है।
खाने की वस्तु को २१ बार मंत्रित करके जिसको खिलाएं, वह वश में होता है। - रात के पिछले पहर में गुगुल खेकर १०८ वार मंत्र पढ़कर, मुख पर हाथ फेरे तो वाद-विवाद में जीत हो, वचन ऊपर रहें याने उसकी बात को सब माने ।
पहले गगल की गोली से १०८ बार होम करना फिर रोगी को झाडा देना ___ तो भूत प्रेत सादिक दोष जाते रहते हैं ।
(यंत्र चित्र नं० १४ देखें)
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२८ ]
अन्य विधि नं.
घंटे के आकार के यंत्र को घंटे के ऊपर खुदवाकर घंटे की प्राण
प्रतिष्ठा करें ।
घण्टाकरणं मूलमंत्र का १२५०० (बारह हजार पांच सौ शुद्ध वस्त्रादि पहनकर दीप धूप जलाकर चंदन की माला से जाय करें ।
यंत्र को पूजा
घण्टाकर मंत्र कल्पः
जब तक जाय पूरा न हो तब तक यंत्र का पंचामृत अभिषेक करके -अष्टद्रव्य से पूजा करें, जाप्य पूरा होने पर उत्तम उत्तम पदार्थों से दशांश होम करें अथवा गुगुल से हवन करें ।
फायदा है ।
उस घंटे को ऊंचे लटका कर घण्टा बजावे जितने प्रदेश में इस घंटे की safe जायेंगी, उतने प्रदेश का वातावरण शुद्ध हो जायगा । उतने प्रदेश में किसी प्रकार को मारि भरि आदि नाना प्रकार को व्याधि नष्ट हो जाती है ।
यह घण्टा कार्य पड़े तब ही बजायें नित्य नहीं ।
यह यंत्र सर्व व्याधि विनाशक है ।
मंत्र का जाप करते समय जितनी शुद्धता और स्वच्छता रखोगे उतना ही
मो
दय
७
Stor
tummy
टा
६
बार शुद्धि पूर्वक मन एकाग्र करके.
[ यंत्र चित्र नं० १५ ].
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घण्टra मंत्र कल्पः
रोगमुक्त यंत्र विधि
इस यंत्र को रविवार के दिन भोज पत्र पर केशर से लिखकर अपने गले में बांधे तो सर्व रोग नष्ट होते हैं ।
कागज पर पहले २५०० लिखकर उनकी पूजा कर नदी में प्रवाहित करें । एक हप्ते तक ऐसा करता रहे तो रोगों से मुक्ति मिलेगी ।
(यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० १५ देखें)
सन्तान प्राप्ति यंत्र विधि
इस यंत्र को शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन श्रष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर पास में रखे तो संतान की प्राप्ति होती है ।
(यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० १६ देखें)
ह्रीँ
양이 돼서
[ २६
माल
न
१२
स्तु १० घं/७ मो / क
[ यंत्र मित्र मं० १६ ].
पदोन्नति यंत्र विधि
इस यंत्र को गुरुवार के दिन भोजपत्र पर लिखकर अपने पास रखें। यंत्र अष्टगंध से लिखें ।
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________________
३० ]
"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं घण्टाकर्ण नमोस्तुते ठः ठः ठः स्वाहा ।"
इस मूल मंत्र का १२५०० (बारह हजार पांच सौ बार स्मरण करते रहें, तो अवश्य पद की उन्नति होगी ।
(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं. १७ देखें)
ॐ
पास रखें।
स्वाहा ।
82
*
टाकर मंत्र कल्पः
Folठः
ह्रीँ
ठः
३
श्रीँ
६ र्ण
टा घं
地 Ba
क
૨
४
ठः
Jitt
क्लो
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घंटा
कर्ण
[ यंत्र चित्र नं० १७ ]
ऋणमुक्ति यंत्र विधि
इस यंत्र को रवि या पुष्य नक्षत्र के दिन केशर से भोजपत्र पर लिखकर
घण्टाकर्ण मूलमंत्र का स्मरण करते हुए व्यापार करें, व्यापार में अवश्य लाभ होगा । ऋण मुक्ति होगी ।
(इस यंत्र के लिए चित्र नं० १८ देखें)
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________________
घटाकर्ण मंत्र कल्पः
।
२
४क.
[ यंत्र चित्र नं० १८ ] ... सर्वसिद्धिदाता लक्ष्मी यंत्र विधि इस यंत्र को भोजपत्र पर केशर से शुद्धतापूर्वक लिखें, लिखते समय शुभ
[यंत्र चित्र नं० १९ }
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________________
३२ ]
मुहूर्त हो, यंत्र को कम करवा कर यंत्र का नित्य पूजन करें ।
घण्टाकर्ण मूल मंत्र के चार श्लोकों का नित्य पाठ करें, तो अवश्य लक्ष्मी का लाभ होता है ।
gure is her:
घर में लक्ष्मी स्थिर होती है
(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० १६ देखें).
दा ठ
८ ४ ठक
[ यंत्र चित्र नं० २० ]
म
३
रं
न ५१
क
घं..
मि
सेना में नौकरी यंत्र विधि
मः
[ यंत्र चित्र नं० २१ ]
(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० २० देखें)
विदेशयात्रा यंत्र विधि
५.१
H
1
(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० २१ देखें)
हा
टा
हा
布
ओ सेना में नौकरी का इच्छुक हैं, वह इस यंत्र को भोजपत्र पर केशर से लिखकर अपनी दाईं भुजा में बांधे तो उसकी मनोकामना पूरी होगी ।
वह प्रतिदिन घण्टाकर्ण मूलमंत्र का जाप करे ।
| वी
- इस यंत्र को भोजपत्र पर रोली से लिखकर अष्ट धातु से बने ताबीज में डालकर दाई भुजा में धारण करें, नित्य मूलमंत्र घण्टाकर्ण का पाठ करें, घण्टाकर्ण की नित्य पूजा करें तो उसका नंबर विदेश यात्रा करने का श्रा जायेगा ।
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घण्टाकर्स मंत्र कल्पः
सर्वकार्य यंत्र सिद्धि विधि इस मंत्र को रोनाली एक-एक करके बना कर २१३ दिन गोली बनाकर नदी में प्रवाहित करें, एक यंत्र को दो के अंक से लिखकर यंत्र पास में रखें।
घण्टाकर्ण मूलमंत्र का जाप करें, अवश्य कार्य की सिद्धि होगी। .. वशीकरण के लिए इसे भूजा में बांधे । इस यंत्र को सिर पर रखें तो कार्य सिद्ध होता है। गर्भरक्षा के लिए कमर में बांधे, तो रोग जाता है। इस यंत्र की पूजन करने से धन की वृद्धि होती है।
इस यंत्र को रविवार के दिन लिखकर, सिरहाने रखने से प्रश्न का उत्तर मिलेगा।
.. . (इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं. २२ देखें)
-
CE
३
AR6
.
ai
LISHERS
[ यंत्र चित्र नं. २२. . . . . [ यंत्र चित्र न.० २३ 11
साझेदारी सफल यंत्र विधि . इस यंत्र को पृथ्वी पर १००१ बार लिखने से साझेदारी के कार्य में लाभ । होता है। यंत्र को शुभ दिन में लिखें।
(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र न.२३ देखें)
.
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-
--
घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
-
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..-
.
..
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संतान दीर्घायु यंत्र विधि ... इस यंत्र को अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर यथाविधि पूजन करने से 'और पति-पत्नी दोनों यंत्र को ताबीज में मढ़वाकर गले में बांधे, ती उनकी संतान दीर्घायु होगी, अल्पायु कभी नहीं होगी। घण्टाकर्ण मूलमंत्र का जाप करते रहें।
। (इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० २४ देखें)
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an
- [मंत्र चित्र नं० २४ ]
[यंत्र चित्र नं० २५] प्रेतबाधानाशक यंत्र विधि इस यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंव से लिखकर अपने घर के सामने गाड देखें, तो हर सरह की प्रेत बाधा नष्ट होती है। घण्टाकर्ण मूल-मंत्र का पाठ करते रहें।
इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० २५ देखें)
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घण्टाकरण मंत्र कल्पः
इच्छित स्थान पर विवाहादि यंत्र विधि
इस यंत्र को अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर ताबीज में डालें तथा भूजा में धारण करें तो कार्य सिद्धि होती है । घण्टाकर्ण मूलमंत्र का पाठ करता रहें ।
(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं. २६ देखें)
वीन
- मे
[यंत्र चित्र नं० २६]
[यंत्र चित्र नं० २७ / . . . . . .
.
अकाल मृत्यनाशक यंत्र विधि . .. इस यंत्र को कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन बरगद की कलम से अष्टगंध से हजार बार लिखें, तो अकाल मृत्युः नहीं होती।
{ इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० २७ देखें )
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
रोगविनाश यंत्र विधि . इस यंत्र को शुक्लपक्ष में रविवार के दिन अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर रोगी के गले में पहनावें तो सर्व रोग नष्ट होते हैं । ___ इस ताबीज को दीप धूप दीखाकर पहनावें ।
( इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं०.२८ देखें )
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[यंत्र चित्र नं. २८ ]
[ मंत्र चित्र नं० २६ ]. सर्व इच्छापूर्ति यंत्र विधि - इस यंत्र को बड़ के पेड़ के नीचे बैठकर ४००० बार अनार की कलम से . भोजपत्र पर या कागज पर लिखें, फिर एक यंत्र अपने पास रखें, तो अवश्य सर्व इच्छापूर्ति होगी।
(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं. २६ देखें।
वशीकरण यंत्र विधि इस यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से रविवार के दिन लिखकर मस्तक पर रखें । तीन लोक वश में होते है । होम करें, घण्टाकर्ण मूलमंत्र का पाठ करें।
. ( इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ३० देखें)
inामान्य
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- घण्टाकर्ण मंत्र:कल्प:
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हो
[ यंत्र चित्र नं० ३० ],
सर्वकार्य-सिद्धि यंत्र विधि इस यंत्र को सोने के ताबीज में डालकर अपने पास रखें। इससे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं। मंत्र को सुगन्धित पदार्थ से भोजपत्र पर लिखें।
( इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं. ३१ देखें)
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यंत्र-चित्र नं०३.११
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः .
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व्यापार-वद्धि यंत्र विधि इस यंत्र को दुकान की दीवाल के ऊपर सिन्दुर से लिखें तो व्यापार में बहुत लाभ होता है।
{ इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ३२ देखें )
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यंत्र चित्र नं. ३३.)
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घण्टाकण मंत्र कल्प:
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....... ... वादजय यंत्र विधि ..... ... .
इस यंत्र को भोजपत्र पर प्रष्टगंध से लिखकर अपनी पगडी या टोपी में रखें दूसरा एक और यंत्र लिखकर पैर में रखें तो लड़ाई या याद में अवश्य जीत होती है !
इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र ३० ३३ देखें )
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[यंत्र चित्र न० ३४]
पुत्र उत्पति यंत्र विधि इस यंत्र को अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर स्त्री के गले में बाँधे तो पुत्र उत्पन्न होता है।
___(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ३४ देखें ) ; - खोई हुई वस्तु की प्राप्ति यंत्र विधि
इस मंत्र को कागज पर लिखकर कपूर की दीप धूप दिखाना, यंत्र साल नासेड बांधना तो खोई हुई. अस्तु की प्राप्ति होती है। घण्टाकर्ण मूलमंत्र का पाठ करते रहें।
(इस यंत्र के लिए मंत्र चित्र नं० ३५ देखें)
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भूत प्रेत व्यंतरादि बाधा निवारण यंत्र विधि
इस यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर ताबीज में रखकर गले में
बांधें तो भूत प्रेत व्यंतर आदि की बाधा नष्ट होती है ।
सर्व प्रकार की हा शांत होती है ।
चार लोक वाला घण्टाकर्ण मूलमंत्र का पाठ करते रहें ।
(. इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र न० ३६ देखें )
ज्वर निवारण
यंत्र
विधि
का नाश होता है ।
घण्टाकर मंत्र कल्पः
इस यंत्र को भोजपत्र पर केशर से लिखकर कण्ठ में धारण करें तो ज्वर
( इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ३७ देखें )
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५ २६ ।। ३२ ।।
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[ यंत्र चित्र नं० ३७ ]
भय निवारण यंत्र विधि
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इस यंत्र को भोजपत्र पर चंदन घिसकर उससे लिखें, लिखते समय शुभयोग हो । उस यंत्र को दीप धूप दिखाकर ताबीज में डालकर पुरुष के दायें हाथ में और स्त्री के बाएं हाथ में बाधे, तो उन्हें कभी भय नहीं लगेगा ।
(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ३८ देखें )
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________________
४२ ]
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
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[ यंत्र चित्र मं० ३८ ]
खांसी निवरण यंत्र विधि
इस यंत्र को ककड़ी के ऊपर स्याही से लिखकर रोगी को खिलावै तो रोगी की खांसी नष्ट होती है ।
4 इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ३० देखें)
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[ यंत्र चित्र नं० ३६
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________________
घण्टाकरण मंत्र कल्प:
४३
आँख दर्द निवारण यंत्र विधि इस यंत्र को लिखकर गले में बांधे, तो आँख का दर्द नष्ट होता है ।।
( इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं. ४० देखें),
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णि म यंत्र चित्र नं. ४.] भत प्रेत निवारण यंत्र विधि इस यंत्र को अष्टगंध से रविवार के दिन भोजपत्र लिखकर गले में बाधें । यंत्र को गुगुल की धूप देवें, तो भूत प्रेत आदि ऊपर को सर्व बाधाएं नष्ट होती हैं।
( इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र न. ४१ देखें) .
स्वाहा
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[यंत्र चित्र नं.४१
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________________
४४
घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
पेट दर्द निवारण यंत्र विधि - इस यंत्र को थाली में केशर से लिखकर उसे धोकर रोमी को पिलावें, तो .. पेट का दर्द दूर होता है।
. ( इस यंत्र के लिए यंत्र विश्र नं० ४२ देखें ) .
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यंत्र चित्र नं. ४२ ] .
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ॐ ह्रींचं राम
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[मंत्र चित्र नं ४३.1
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________________
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
वाद जय यंत्र विधि
इस यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर दांये हाथ की भूजा पर बाध तो वादविवाद में विजय हासिल होती है ।
{ इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ४३ देखें )
मस्तक वेदना दूर होने की यंत्र विधि
इस यंत्र को भोजपत्र पर केशर से लिखकर मस्तक पर धारण करें तो मस्तक की वेदना दूर होती है ।
( इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ४४ देखें )
ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीँ १४२ १६
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ठः ठः ठः स्वाहा
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यंत्र को २००० बार पृथ्वी पर भी लिखे ।
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[ यंत्र चित्र नं० ४४ ]
गडे हुए धन की प्राप्ति यंत्र विधि
इस यंत्र को बेलपत्र के रस भौर हरताल से बेलपत्र की ही कलम से एकान्त स्थान में बैठकर २००० बार लिखें तो गडा हुआ धन प्राप्त होता है ।
( इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ४५ देखें }
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घण्टाकणं मंध कल्प:
4.
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[ यंत्र चिव नं० ४५] एकांतर ज्वर नाश यंत्र विधि इस यंत्र को ठिकरे पर केशर से लिखकर रोंगी की भूजा पर बांधने से एकान्तर ज्वर का नाश होता है ।
. ( इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं०४६ देखें ।
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५ क. रा. चंद्र
1 यंत्र चित्र न. ४६ . .
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________________
घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
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कष्टा स्त्री को सुखदायी यंत्र विधि
इस यंत्र को केशर से थाली में लिखकर उसे धरकर उस पानी को कष्टा सीमा को पिलाने से कष्टा स्त्री को सुख मिलेगा।
। (इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं. ४७ देखें).
.
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यंत्र चित्र नं. ४७] विषम ज्वर नाशक यंत्र विधि इस यंत्र को भोजपत्र पर केशर से लिखकर रोगी की भूजा में बाधा सो सर्व प्रकार का विषमज्वर नष्ट होता है। .....
पुस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं.४६ देखें)
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[यंत्र चित्र नं० ४४ }
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________________
४८ ]
भय विनाशक यंत्र विधि.
इस यंत्र को केशर द्वारा भोजपत्र पर लिखकर पुष्पादि से पूजन करके अपने घर के सामने गाडने से हर प्रकार का भय नष्ट होता है । इस यंत्र को किसी शुभ दिन में लिखें ।
{ इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ४६ देखें )
[ यंत्र चित्र नं० ४६ ]
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घण्टाकर्णे मंत्र कल्पः
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विघ्न विनाशक यंत्र विधि
इस यंत्र को शुक्ल पक्ष के पहले रविवार के दिन भोजपत्र पर केशर से लिखकर दोप धूप से पूजा करके दाई भूजा में बाँधे तो सर्व प्रकार के विघ्न नष्ट होते हैं । ( इस यत्र के लिए यंत्र चित्र नं. ५० देखें )
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[ यंत्र चित्र नं० [५० ]
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
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चित्र नं. ५१
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
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सर्व सिद्धि दायक यंत्र विधि . इस चक्राकार यंत्र को थाली में खुदवाकर यंत्र प्रतिष्ठा करें, बड़े वाले घण्टाकर्ण मूलमंत्र का १२५०० जाप दीप धूप रखकर करें।
जाप के बाद दशांश होम करें । यंत्र सिद्ध होगा।
इस यंत्र को नित्य सामने रखकर घण्टाकर्ण मूलमंत्र का जाप्य करें, जाप्य करने से चिंतित कार्य की सिद्धि होती है।
यह यंत्र चिंतामणि यंत्र है, प्रत्येक कार्य को सिद्धि करने वाला है । इस यंत्र के प्रति बुरे भाव नहीं रखें। इसके प्रति परोपकारी भावना रखनी चाहिए। इस यंत्र का पानी रोगी को पिलाने से सर्व रोग शांत होते हैं।
यंत्राराधना से धन की वृद्धि होती है, प्रत्येक सुख प्राप्त होते हैं, समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है, संतान सुख की प्राप्ति होती है, विद्या-बुद्धि ज्ञान की प्राप्ति होती है।
(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ५१ देखें)
परिशिष्ट चित्र नं. ५२ से आगे के सभी यंत्र चित्र मणिलाल साराभाई के द्वारा ।। • मुद्रित घण्टाकर्ण कल्प से उधृत हैं।
(इस यंत्र के लिए यंत्र चित्र नं० ५२ देखें)
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[ यंत्र चित्र नं. ५२]
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(बटाकर्ण वीर के लिए मंत्र चित्र नं० ५३ देखें )
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( यंत्र चित्र नं०५३)
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घण्टाकस मंत्र कल्पः
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यंत्र चित्र नं० ४४ ।
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________________
धेटाकर्ण मत्र कल्प:
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[ यंत्र चित्र नं० ५५ ] इसे लक्ष्मी यंत्र भी कहते हैं ।
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________________
[ यंत्र चित्र नं ५७ ]
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________________
घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
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प्राचीन घण्टाकणाकल्प को हस्तलिखित प्रति का अंश। ॐ घंटा क गो म हा वी र सर्व व्या . धि लिखि तो ऽक्ष र पंक्ति भि से गा स्त धि व क णों ज पा क्षयं शाकिनी व वि दे व र णो न म्य न ध म भ प्रमा में पं म ना म्नि नुहों , प्ये म णाम ष्ट क्लि ले यं स्नु म्बा हा हा रणा व म्पक नि ना का भ मो न रसो कम ना ज वि न्य यनर बी ग्नि प्र नाय ला ग म्या मन त प भ भालपन
पन पत्र न ना डू को क न पि के .. ल व हा म ख. र दा र प्रोप्रा मुभुः
अथ घण्टाकर्ण कल्प लिख्यते--स यंत्र निरंतर स्तबीयेये तो बलवान रोगन रहै । अथवा रात्रि सोतां सुमिरिये तो चोर न लाम अथवा कुमारी कन्या सूत्र डोरी
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
हाथ में बांधिये तो बेलज्वरो एकान्तरो जाय । चित्रोलिखित डोरी की घंटामांहि बांधिये तो टोर रोग टलैं। ए यंत्र लिखो बार माखा बाधिये तो मकोडा जाय। पानी मंत्र पाजिये तो पेट पीड़ा जाय छुल जाय सर्वदोष नाशयति । घण्टाकर्ण त्रिकाल सुमरिये तो अधूरी प्रायु भो नमरै । त्रिकाल सुमरिये तो परवार माहै रोग न उपजै । घंटा त्रिकाल सुमरिये तो उपद्रवं टले । कन्याकुमारी का सूत्र मान बड़ो डोरो कीये मान गांठ बांधिये तो, २१ मंत्रिये गुगल के बीजे हाथे बांघिये तो बेला, ज्वर जाय ।।
प्राचीन घण्टाकर्णकल्प की हस्तलिखित प्रति का अंश । . विधि मन्त्रः-यह मन्त्र १४५ अक्षर का जपं बार दस हजार गुग्गुल को धूप देय तो राज्य भयादि सर्व भय का नाश होय सर्वसिद्धि होय, भोजपत्र पास राखें अथ पंच दमी मंत्र विधि पट्टी, १ गाम को ६ अंगुल चौडी १७ अंगुल लम्बी रवि दिने करावनो पोछे शुभ दिने शुभ वार पट्टी माजनी भ्रबीरर रचना कलम अनार को अवर वस्त्र पहिर यंत्र लिखें मुख से पढ़ता जाये.. निरन्तर पढ़ें पहिले दिन पान फूल बताशा धूप करके ईशान मुख करके बैठे यंत्र भरे पट्टी तनीयंत्र पढ़ता जाय स्वप्न में लक्ष्मी नथा पानो बहुत नजर आवें सवा लक्ष होने से मंत्र यंत्र सिद्ध होय ॥ इति ।।
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________________
घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः . ..
नागार्जुन यन्त्र विधान नागार्जुन यन्त्र के चार स्वरूप आगे दिये गये हैं। इनमें से जिस स्वरूप को भी चाहें, उसे सोना, चांदी अथवा तांबे के पत्र पर खुदया लें। फिर किसी शुभ दिन प्रातःकाल एक लकड़ो की चौकी पर रेशमी वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर यन्त्र को रखें तथा पूर्वोक्त विधि से यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा करें । तदुपरान्त यन्त्र के ऊपर पाश्वनाथ प्रभु की मूर्ति स्थापित करके पहले पंचामृत से अभिषेक करें, फिर अष्ट द्रव्यों से नीचे लिखे अनुसार पूजा-अर्चना करें। . सर्व प्रथम निम्नलिखिर सर का सहारा करमा गाहिए-..
__ "ॐ जीवानां . बह जीवन प्रायः जीवन समझक्षे। __ यो नागार्जुन यंत्रं भजते कि कुर्वते हि तस्य वचनागाः ।" इसके उपरान्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करेंमन्त्र--ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौ स्वः पः हः पक्षी प देवदत्तस्य
सर्वोपद्रव शान्ति कुरू कुरू स्थाहा पारिए प्रभवे निर्वामि
स्वाहा ।" टिप्पणी:- उक्त मन्त्र में जहां देवदत्त शब्द पाया है, वहां साधक को अपने नाम का उच्चारण करना चाहिए।
इसके उपरान्त क्रमशः निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए पूजा द्रव्य समर्पित करने चाहिए।
. गन्ध का मन्त्र "चन्द्रप्रभु शोभा गुण युक्त्यं । चन्दन के चन्दन रवि मिश्रे। यो नागार्जुन यंत्रं भजते किं कुर्वते हि तस्य वचनागाः।"
"ॐ ह्रां ह्रीं ह्रलो हः ।
मंचं समर्पयामि । .. ... यह कहते हुए गंध समर्पित करें।
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________________
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घण्टाकर्णं मंत्र कल्पः
अक्षत का मन्त्र
"अक्षत पुर्जे जिनवर पद पंकजा सुकृत कुजैरिव चिरंजे भजते । यो नागार्जुन यंत्रं भजते किं कुर्वते हि तस्य वचनागा । " ॐ ह्रां ह्रीं ह ह्रीं ह्रः ।
अक्षतान् समर्पयामि ।
यह कहते हुए 'अक्षत' ( चावल ) समर्पित करें।
पुष्प का मन्त्र
"पुष्पै कलिः कुल कलि सद्यः । भव्यं चंपक जातिकैः । "यो नागार्जुन यंत्रं भजते कि कुर्वते हि तस्यं वचनागाः ।" ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ह्रः पुष्पं समर्पयामि ।
यह कहते हुए 'पुष्प' समर्पित करें।
चरू का मन्त्र
"हृष्यै हर्ष करे रसनानां । नाना विष प्रिय मोदकादीनां । यो नागार्जुन यंत्रं भजते किं कुर्वते हि तस्य वचनागाः । " ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः ॥
च समर्पयामि ।
यह कहते हुए चरू (अनेक प्रकार के मिष्ठान ) समर्पित करें ।
दीप का मन्त्र
बुद्धं । दहि कर्मणि माकवि खंडे | भजते कि कुर्वते हि तस्य वचनामा: ।"
दीपेदि प्रकरै यो नागार्जुन यंत्रं
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रहः । ati प्रदर्शयामि ।
यह कहते हुए दीपक प्रदर्शित करें।
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घण्टाकर्ण मंत्र कल्पः
[ ५६
- धूप का मन्त्र "धोप्यौपजकदलैश्च प्राण घ्रीणनकै . परमाग्यैः । . यो नागार्जुन यंत्रं भजते किं कुर्वते हि तस्य वचनागाः ।"
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रह्रौं ह्रः ।
धूपं आनायामि। मह कहते हुए धूप दें।
फल का मन्त्र "चोचक मोचक चौत क पुगे । रामलकाद्यैर्गध फलश्च । यो नागार्जुन यंत्रं भजते किं कुर्वते हि तस्य वचनागाः ।"
ॐ ह ह्रीं ह्रहाँ हः ।।
फलं समर्पयामि। यह कहते हुए फल समर्पित करें। .
.. अर्घ्य का मन्त्र "अम्बुश्चन्दन शालिज पुष्पहव्यः दीपक धूप फैलाचः । यो नागार्जुन यंत्रं भजते किं कुर्वते हि सस्य वचनागाः ।"
ॐ ह्रां ह्रीं हं ह्रौं ह्रः।।
अयं समर्पयामि । यह कहते हुए 'अध्य' समर्पित करें।
उक्त विधि से अष्ट द्रव्य समर्पित करके निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें। इस मन्त्र के अन्तिम भाग में जहां देवदत्त शब्द पाया है, वहां साधक-व्यक्ति . के नाम का उच्चारण करना चाहिए । . .
"दुष्टव्याला करामृतये पतिरनिर्भत के कि करोति । योहा मंत्र मेवं प्रबर गुरपयुतं पूजयेन प्रसिद्धिः ॥"
.
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________________
इसके पश्चात पार्श्वनाथ स्तोत्र आदि पढ़कर पार्श्वनाथ पूजा की जयमाला पढ़नी चाहिए। तदुपरान्त विसर्जन करें । घरणेन्द्र पद्मावती की षोडशोपचार विधि को करने से यह यन्त्र सिद्ध होता है ।
मुनि
भाषा अनुवाद की प्रशस्ति
श्री मूलसंघे सरस्वतीमच्छे बलात्कारगणे कुन्दकुन्दाचार्यपरम्परायां श्री श्राचार्य आदिसागर तत्शिष्य समाधिसम्राट अध्यात्मयोगी तोर्थभक्त शिरोमणि सर्वसिद्धान्तपारज्ञ अष्टादशभाषाविज्ञ महान्तात्विज्ञ यंत्र तंत्र
कीर्ति तत्शिष्य गणधराचार्य कुन्थुसागरेण घण्टाकर्ण मंत्र कल्प वीर निर्वाण २५१६ तियो कार्तिक शुक्ला सप्तभ्यां सोमवासरे समाप्तं कृतवान् ।
शुभं भूयात् ।
शोध
शाकि न्याय प्रवीक्षा प्रहकृत सकलानि क्षणान् संक्षयन्ति । श्री मजेना गमेनं प्रकट मति प्रोक्तमेवं विवं च ॥
teche
Fin
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रः श्रसि श्राउसाय स्वाहा पः श्वीक्षीं । निलंस अनुकेस्स देवदत्तस्य ग्रहोच्चाटनं कुरू कुरू क्षयः स्वाहा ||
我
संस्थान (द
1
आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनम् पूजा होमं न जानामि त्वं गति परमेश्वर ॥
उदयप
मंत्रज्ञ - प्राचार्य महावीर शास्त्रस्य हिन्दी टीका
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है श्री दिगम्बर जैन कुथु विजय ग्रन्थमाला समिति
जयपुर (राज.)
द्वारा
किये गये पूर्व प्रकाशन
1. लघुविद्यानुवाद (द्वितीय संस्करण)
(यंत्र, मंत्र, तंत्र विद्या का एक मात्र संदर्भ ग्रंथ) 2. श्री चतुविशति तीर्थकर अनाहत यंत्र मंत्र विधि 3. तो मान करो ध्यान 4. हुम्बुज धमरण सिद्धान्त पाठावलि 5. मिलन 6. श्री शीतलनाथ पूजा विधान
(कन्नड़ भाषा से संस्कृत भाषा में अनुवादित) 7. वर्शयोग स्मारिका 8. श्री सम्मेद शिखर माहात्म्यम् 9. रात्रि भोजन त्याग कथा 10. श्री शीतलनाथ पूजा विधान
(संस्कृत भाषा से हिन्दी में अनुवादित) ₹ 11. श्री भैरव पदमावती कल्प:
(यंत्र मंत्र विधि सहित) 12. सच्चा कवच १ 13. श्री गोम्मट प्रश्नोत्तर चिन्तामणि १ 14. धर्म शान एवं विज्ञान है 15. श्री शान्ति मण्डल कल्प: पूजा विधान
ग्रंथमाला समिति सेवाभाव से कार्यरत है, तथा सभी को ज्ञानदि इसका लक्ष्य है।
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________________ कि णमो अरिहताण महामन्त्रनवकार , णमो सिदाणं या णमो आयरियाणं रणनो उबकायाण AS SEKS HE H EE मोलोएसव्व साहण - - LAM न - HIआण ताण MBE/gनहीं जाणं. -:: .a ni. ::-:-ALM DET . -- ESE ANDH ANTOS 1 This TULATARich वहस्कमहानजैन मन्त्र है। इसके अक्षरों की ध्वनि में अपारशक्ति छपी हुई है। इसके उच्चारण सेसभीकार्य सिल्व होते हैं।यहबझठीदार मन्त्र है।लोककेसी / महान आत्माओं को इसमें नमस्कार किया गयाहीयह पञ्चनमस्कारमा सब पापों का नाश करनेवाला है, और सब मंगलों में महान मंगल है।इसको पठने से आनन्द मंगल होता है। क्योंकि इसके पढ़ते ही लोक के असंख्य महान आत्माओं | का स्मरण और आशीर्वाद प्राप्त हेता है।