Book Title: Ghantamantrakalpa
Author(s): Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 51
________________ मार्ग quered मंत्र कल्पः अन्य विधि नं. ६. इस यंत्र को अष्टगंध से रविवार के दिन भोजपत्र पर लिखकर चांदी या सोने के ताबीज में डालकर मस्तक पर रखें । इसे धूप से खेवें । राजमान मिलेगा, सर्वत्र यश होता है, लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं, सर्वकार्य की सिद्धि होती है । इस विधि में घण्टाकर्ण मूलमंत्र का प्रथम जाप करें । आसन, ध्यान लगाकर एकाग्रता से जाप करें । सर्वत्र शांति होगी । (यंत्र चित्र नं. १२ देखें) अन्य विधि नं. ७ २०३२ Lone [ २५ क्रमांक M (राज.) x 1 'उदरापुर ture मूलमंत्र का रवि या पुष्य नक्षत्र या रवि मूल नक्षत्र में या किसी शुभ दिन में १२५०० ( साढ़े बारह हजार ) जाप्य करें । यह १४ या २१ दिन मैं पूरा करें। उस समय वस्त्र शुद्ध हों, महावीर प्रभू के सामने दीप धूप सहित पाठ प्रकार के धान्यों के अलग-प्रसंग ढेर लगाकर एकासन करें, ब्रह्मचर्य का पालन करें। इस मंत्र को तीनों काल में पढ़ने से मृगी रोग शांत होता है। घर में इस रोग का प्रवेश हो नहीं होगा । .... सोते समय इसे तीन बार पढ़कर तीन बार ताली बजाकर सोये तो सर्पभय, बोरभय, निभय और जलभय इत्यादि भय नहीं होते हैं । अछूते पानी से २१ बार इस मंत्र को मंत्रित करें और उस पानी के छींटे देवें तो अबु जाती है । मंत्र को लिखकर घंटे में बांधे और घंटा बजाने पर उसकी भावाज जहाँजहां जाएं वहाँ वहाँ के उपद्रव शांत होते हैं । कन्या कत्रीत सूत्र में ७ गांठें लगावें धौर २१ बार इसे पढ़ता जाए, इस सूत्र को बच्चे के गले में बांधे तो नजर नहीं लगे ।

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