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ग्रंथ प्रकाशन का कार्य एक कठिन कार्य है जिसमें यन्त्र मात्र सम्बन्धी ग्रंथों का प्रकाशन और भी विकट कार्य है । लेकिन गुरुवों के शुभाशीर्वाद से सब बांधाये दूर होकर कार्य में सफलता प्राप्त हो जाती है जिनको कार्य में पूर्ण निष्ठा संथा गुरुवों के शुभाशीर्वाद में दृढ़ श्रद्धान होता है ।
परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य महाराज के मंगलमय शुभाशीर्वाद से हमने इस ग्रंथ का भी प्रकाशन कार्य प्रारम्भ करवाया और अनेकों प्रकार की पहले से भी • ज्यादा बांधाए थाने के बावजूद भी हमने इस ग्रंथ के प्रकाशन कार्य को पूर्ण कराने में सफलता प्राप्त की है।
ग्रन्थमाला संचालन में सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं का बहुत-बहुत ग्राभारी हूँ कि आप सभी का समय पर कार्य पूरा कराने में मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है । श्री प्रदीप कुमार गंगवाल ने परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्धु सागरजी महाराज के शुभाशीर्वाद से इस कार्य में अत्यधिक परिश्रम किया है। ग्रन्यः सहयोगीगण सर्व श्री • मोतीलाल जी हांडा, श्री लिखमीचन्द जी बख्शी, श्री लल्लूलालजी गोधा, श्री रवि कुमारजी गंगवाल, श्री रमेश चन्दजी जैन, जैन संगीत कोकिलारानी, बहिन श्रीमती कनक प्रभाजी हाडा, श्रीमती मेमदेवी जी गंगवाल आदि का विशेष सहयोग रहा है।
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ग्रन्थ प्रकाशन कार्यो को बहुत ही सावधानी पूर्वक देखा गया है फिर भी कमियों का तथा त्रुटियों का रहना स्वाभाविक है । श्रतः साधुजन, विद्वतेजन तथा पाठकगण त्रुटियों के लिए क्षमा करते हुए शुद्धकर अध्ययन करने का कष्ट करें। साथ ही साथ ग्रंथ के संग्रहकर्ता परम पूज्य श्री १०८ गणषराचार्य कुन्यु सागरजी महाराज को तथां ग्रंथमाला समिति को सूचित करने की कृपा करें ताकि आगामी ग्रन्थों के प्रकाशनों में और अधिक सुधार लाने में हमें आपका सहयोग प्राप्त हो सके।
- अंत में तिजारा अतिशय क्षेत्र पर देवाधिदेव श्री १००८ भगवान् चन्द्रप्रभुजी के चरणों में नतमस्त होकर परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुत्थु सागरजी महाराज को त्रिवार नमोस्तु अर्पित कर यह ग्रंथराज उनके कर कमलों में भेटकर प्रार्थना करता हूँ कि वह इस महत्वपूर्ण ग्रंथराज का विमोचन करने की कृपा करें।
दि० : ३००१-६१
परम गुरुभक्त गुरु उपासक संगीताचार्य प्रकाशन संयोजक शान्ति कुमार गंगवाल
बी. कॉम जयपुर (राजस्थान)