Book Title: Ghantamantrakalpa
Author(s): Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 23
________________ गलधराचार्य श्री ने पहले लविद्यानुवाद ग्रंय का प्रकाशन करावाया था जिसको समाज में मिश्रीत प्रतिक्रिया हुई थी लेकिन जब उसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुप्रा तो किसी प्रकार की आपत्ति नहीं की गयी। "घंटाकर्ण मंत्र कल्पः" उनका चतुर्थ मंत्र शास्त्र का ग्रंथ है जिसके प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य मंत्र शास्त्र का उद्धार करना है, किसी का अहित करना नहीं । प्राचार्य श्री के अनुसार, इस ग्रंथ के मंत्र और मंत्र से प्रनेक प्रकार के कार्य सिद्ध होते हैं । घंटाकर्ण मंत्र को साधना से अनेक प्रकार के विनों का नाश हो जाता है। मंत्र साधना की विधि, मंत्र सिद्धि के फल प्रादि पर भी प्रथ में विस्तृत प्रकाश डाला गया है और उसे सर्व जनोपयोगी बनाने का प्रयास किया है। "घंटाकर्ण मंत्र कल्प:" किस प्राचार्य की कृति है तथा वे किस समय के विद्वान थे, इसका प्रस्तुत प्रथ में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारा की ग्रंथ सूचियों में जिन पाण्डुलिपियों का उल्लेख हुपा है ये सब अधिक प्राचीन नहीं है। हो सकता है इस मंत्र की प्राचीन पाण्डुलिपि उपलब्ध नहीं हो सकी हो। इसलिये आचार्य श्री ने प्रारा की पाण्डुलिपि को अपना प्राधार बनाया है। कुछ भी हो मगधराचार्य श्री ने घंटाकर्ण मंत्र कल्प; का हिन्दी अनुवाद एवं सम्पादन करके एक विलुप्त साहित्य को प्रकाश में लाने का श्लांधनीय प्रयास किया है। साहित्यिक जगत उनका पूर्ण प्राभारी रहेगा। प्रस्तुत नय का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन कुथ विजय प्रथमाला समिति, के. प्रकाशन संयोजक श्री शांति कुमारजो गंगवाल जयपुर ने कराके एक प्रशस्त कार्य किया है । श्री गंगवालजी ग्रंथमाला के माध्यम से अब तक 15 ग्रयों का प्रकाशन कर चुके हैं। . उनका यह प्रकाशन कार्य आगे बढ़ता रहे, यही मंगल कामना है। डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल

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