Book Title: Ghantamantrakalpa
Author(s): Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ श्री १०५ क्षुल्लक चैत्य सागरजी महाराज का मंगलमय शुभाशीवाद मुझे यह जानकर हादिक प्रशन्नता है कि श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रन्थमाला समिति जयपुर (राजस्थान) द्वारा अनेक महान महान अप्रकाशित ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है और हो रहा है। अभी वर्ष १९६० का मेरा वर्षायोग जयपुर में ही हुमा और इसी बीच मैंने श्री घण्टाकर्ण मन्त्र कल्प: ग्रन्थ की मूल प्रति ग्रन्थमाला के प्रकाशन संयोजक श्री शान्ति कुमारजी गंगवाल से देखने का मौका प्राप्त हुआ, जिसका प्रकाशन यह ग्रन्थमाला समिति करवा रही है। इस महान ग्रन्ध का संग्रह परम पूज्य प्रातः स्मरणीय श्री १०८ गरधराचार्य कुल्थ सागरजो. महाराज ने किया है इस ग्रन्थ में अनेक यंत्र मंत्र प्रकाशित किये गये है जिनके माध्यम से भव्यजीव ग्रन्थ में वरिणत विधि तथा पूर्ण श्रद्धा के साथ उपयोग करने से अनेक संसारी माघामों तथा संकटों से मुक्ति पा सकते है। आज समाज में अनेकों लोग विभिन्न प्रकार के संकटों से पीड़ित है और उनसे छुटकारा पाने हेतु इधर उधर भटकते रहते है। अत: समाज के लोगों के लाभार्थ अपने अमूल्य समय में से समय निकालकर परम पूज्य गगधराचार्य महाराज ने जो इस. ग्रन्थ का संग्रह करने का महान कार्य किया है इसके लिये मैं उनके धः चरणों में शत-शत बार नमोस्तु अर्पित करता हुमा प्रार्थना करता हूं कि आप इसी प्रकार महान महान ग्रन्थों का संग्रह कर हम सभी को लाभ पहुंचाते रहे। इस ग्रन्थ का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रन्यमाला समिति के द्वारा हो रहा है । ग्रन्थ प्रकाशन एक महान विकट कार्य है। फिर भी इस ग्रन्थमाला समिति ने अल्प समय में अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन कर श्रमण वर्ग तथा समाज में काफी ख्याति प्राप्त करली है। ग्रन्थमाला के अल्प प्राधिक साधन है। फिर भी इस ग्रन्थमाला के सुचारू रूप से चलाने में ग्रन्थमाला के प्रकाशन संयोजक गुरुउपासक जिनवाणी सेवक श्रावक सिरोमणि धर्मालंकार श्री शान्ति कुमार जी गंगवाल तथा उनके सुपुत्र श्री प्रदीप कुमारजी गंगवाल का विशेष योगदान है । मेरा इनको भूरि-भूरि शुभाशीर्वाद है कि प्राप अनेक प्रकार के बाधाओं तथा विरोधियों का विरोध भी सहन करते हुए अपने प्रकाशन कार्यों में निरन्तर लगे रहे और नवीन-नवोन ग्रन्थों का प्रकाशन करते रहे। क्षुल्लक चत्य सागर

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88