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धर्मवद्धन ग्रन्थावली खोटो चोर वसे जिण मै मन खापरी,
तप हथियारे तोडि तुतिण रो टापरौ ॥ ८ ॥ सुहिणा माहे राक हुऔ राजा सही,
मन माहे खुसीयाल हरष मा- नहीं । मोजे पहिल्या माणिक मोती मुदडा
__ जागी जोवै गोढ़े घर रा गूदड़ा ॥ ६ ॥ जुड़ियौ तिम संवध सहु सुहिणा जिसौ,
वीखरता नहीं वार गरथ गारव किसौ । देइस जोतु कान सुगुरू वचना दिसौ, .
तो दुख नहीं जिण ठाम लहिस थानकतिसो १८ क्रोध मान माया वलि लोस मता करो,
दान शील तप भाव अमल मन में धरौ। विजयहरप जसवास सु लोकां मे वरो,
धरमसीह कहै एक धर्म मन से घरो ।। ११ ।।
हितोपदेश स्वाध्याय
राग सामेरी चेतन चेत रे चलि मा चपलाइ, सुगुरु कहै छ साची । संबल काइक लेजो साथे, काया घट छै काचौं । चेतन । १ ।