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ऐतिहासिक व्यक्ति वर्णन १४३ बड़ो उमराव दिल्लेस वखाणियो,
रूप भूपा अनूपसिंह राजा ॥१॥ कहर अरि कटकी काटि काने किया,
विरूद मोटा लिया आप बाहे। करण तण आपणौ सुजस सगले कियौ,
सही परसंसियो पातिसाहे ॥२॥ पाट बैठा प्रथम हरप हुयो प्रजा,
___दसो दिस भूपते भेट दीधी। सूरहर आप सुलतान साराहि ने,
कुजरा धना बगसीस कीधी ॥३॥ हिन्दुआ मौड राठौड़ मौटे हसम,
पुहवि पत्ति माहि परताप प्राझौ । अनूपसिंह राजवी अटक कटके अडिग,
आप श्रीजी करै जास आझो ॥४॥
अमरसिह जी सनैया ।
तेरे तो प्रताप के प्रकाश त्रास पाइ अरि
नास सरण की आस डोलत घराघरी। तेरे ही नि देस देस नेस न प्रवेस कहुं
वन मैं निवेस काज धर की धराधरी। सिंह न कौ डर डारि कन्दर के अन्दर ही
चैरि हीये तेरौ भय भयौ हैं खराखरी ।