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चौवीस जिन सवैया
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जल के उपल जैसे करणे यथाप्रवृति,
कर्म थिति तुच्छ के परस देस ग्रंथ ग्रंथ । कीनो हे अपूरवकरण अनुभौ प्रमान,
ज्ञान के मथान सु मिथ्यात मोह मथ मथ । करण अनिवृति आयो, धर्मसील ध्यान ध्यायो ।
पायो है उढं सरूप समकित को पंथ पथ ।
कुथ कुथ सम लीनी, चक्रि पद हेय कीनी,
कुथ की दुहाई भाई, जो न वोले कुथ कुथ ॥१७॥
सुदर्शन गात सुदर्शन तात है, देवीय मात माहा जसनामी । लह्यो अवतार भयो चक्रधार, तिथंकर है पदवी दोइ पामी। जाकै प्रताप मिटै सब ताप, जपो जप ताप स अन्तरजामी। तरी भव पाथ' सदा सुख साथ, नमो अरनाथ अढारम
सामी ॥१८॥
जिनकै मुर कु भसौ कु भ पिता पुनि, मात प्रभावित पुन्यकी पोपी सुपने दम च्यार लहै सुविचार, भयौ जिनको अवतार अदोषी कितने नृप तारि किए उपगार, लह्यौ सिव द्वार भवोदधि सोपी मति को मतभेद कहौ कोऊ कैसे हुं, मल्लिकी चल्लि असल्लिकी
चोखी ।।१।।
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जल