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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
नारी कुञ्जर जाति सवैया शोभत घणी जु अति देह की वणी है दुति, सूरिज समान जसु तेज मा वदाय जू भूपति नमैं है नित नाम को प्रताप पहु, दैवत तही ही दुख नाहि है कदाय जू । पूरण बडेई गुरा सेव के करे थे सुख, वटत तही ही वहुलोक समुदाय जू । देत है बहूत सुख देव सुगुरुहि नित, दोऊ को नमै है ध्रमसीह यो सदाय जू ।
अन्तापिका आदर कारण कौन भूप कहा रोपि र क्रम न रहै निश्चल कौन कौन त्रिय नयने ऊपम कर विन कहा वृत्ति बामि वच को न उथा कोन नाम समुदाय कौन तिय पुरुपई व्याप वसती विहीन कहिये कहा सवहि कहा राखत जतन धरिजे अखंड भ्रममी कहै 'धरम एक जग मे रतन' १
। यह पूरा पढने से "इकतीमा सबैया” है, बड़े अक्षरो को
छोड़ देने से "मवचा तेवीना" हो जायगा।