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शील रास
भरीयै रू तसु भुंगली, तातै सूए रे दृष्टात कि । हिंसा जीवा री हुवै, एहवा विषय कह्या अरिहंत कि । २० | शी. त्यागी विपय तथा तिके, ज्ञानी तेह गिणीजै गान कि । अथिर गिणीजै आउखौ, वरतै जेहवो संध्या वान कि | २१ | शी. जेवी चंचल वीजली, पीपल नौ वलि पाकौ पान कि । ठार रो तेह न ठाहरै, वैश्या नौ जिम नेह विधान कि ||२२|| कीजै मद ते कारिमा, जल अंजलि नौ देखत जाय कि । करवत बहती काठ मैं, दीसैं इण विध आयु रदाय कि । २३ | शी. सुखदाई संसार मैं, साचो नहीं कोई धर्म समान कि । एहना भेद अनेक छै, पिण सहु माहे शील प्रधान कि । २४ | शी ज्वलन हुवै जल जेहवौ, सरप हुवै फूलमाल समान कि । मीह हुवै मृग सारिखौ, सीलें सहु बाता आसान कि । २५ | शी झूठो गय ते हय जिसौ, हालाहल ते अमृत होइ कि । जोरावर अरि मित्र ज्यं, कष्ट करें नहीं सीलै कोय कि । २६ । शी. परिसिद्ध नाम प्रभात नौ, ल्यै सहु कोइ मन सुध लोक कि । पणु के परम्परा, वलि शास्त्रा थी केइ विलोक कि १२७१ शी. आदिसर नी अंगजा, ब्राह्मी शीलवती वाह वाह कि । सुन्दर रूप सपेखि नॅ, चक्री भरत धरी चित चाह कि १२८| शी. साठि सहस वरसा लगे, तप आविल करी तोड़ी काय कि । शील पाल्यौ तिण सुन्दरी, कीरति आज लगें कहिवाय कि । २६ शुकल किसन पख टपती, शील अडिग नी एकण सेज कि । सहस चौरासी साधु थी, आदिसर परसस्या एज कि |३०| शी
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