Book Title: Dharmvarddhan Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली अह तेऽनुभावं समारुह्य नावं,
तितीपुर्विभावंश्रितस्त्वा मुदाऽवं ।।२।। न केनाऽपि केनाऽपि भोगादिना मे, वशाया रिरसा निनंसोस्त्वदं ही।
विनेता तवेशास्मि नेतासि मे त्वं,
रमा धर्मशीलप्रमा देहि मह्य (१) ॥३॥
इति श्रीपार्श्वस्य लघुस्तोत्रमद कोविदसद प्रशस्यं ।
श्री बीकानेरमध्ये श्रीआदीश्वरमूर्ति स्तोत्रं
प्राज्या चरीकति सुखस्य पूर्ति,
यका जरीहर्ति च दुष्टजूति । मद्रश्च मोमूर्ति सुभक्तमूर्ति,
ता वीकपुर्या नमतादिमूर्ति ।।१।। इष्टार्थपूत्तौं घु घटी वरीयसी,
जाड्यात्तिहानावपटीपटीयसी, गिरीसभेयं प्रतिमा गरीयसी,
स्थिरा स्थिरावद् भवतास्थवीयसी ॥२॥ 'एनाजिनेनागसमा शयद्वयं,

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