Book Title: Dharmvarddhan Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 461
________________ - ३८० धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली अह तेऽनुभावं समारुह्य नावं, तितीपुर्विभावंश्रितस्त्वा मुदाऽवं ।।२।। न केनाऽपि केनाऽपि भोगादिना मे, वशाया रिरसा निनंसोस्त्वदं ही। विनेता तवेशास्मि नेतासि मे त्वं, रमा धर्मशीलप्रमा देहि मह्य (१) ॥३॥ इति श्रीपार्श्वस्य लघुस्तोत्रमद कोविदसद प्रशस्यं । श्री बीकानेरमध्ये श्रीआदीश्वरमूर्ति स्तोत्रं प्राज्या चरीकति सुखस्य पूर्ति, यका जरीहर्ति च दुष्टजूति । मद्रश्च मोमूर्ति सुभक्तमूर्ति, ता वीकपुर्या नमतादिमूर्ति ।।१।। इष्टार्थपूत्तौं घु घटी वरीयसी, जाड्यात्तिहानावपटीपटीयसी, गिरीसभेयं प्रतिमा गरीयसी, स्थिरा स्थिरावद् भवतास्थवीयसी ॥२॥ 'एनाजिनेनागसमा शयद्वयं,

Loading...

Page Navigation
1 ... 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478