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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
निसि मौन सो बठो तके केहै ऊघत सूनी ही सोर कर सहरों। न लहै गुण के को कहै ध्रमसी जगि आज लबारिन को पहुरौ ।।
समस्या-दोहरा हमारे देस छोहरा करतु है ।
सवैया इल्तीसा एक एक ते विसेप पंडित वसै असप,
रात दिन ज्ञान ही की वात कुं धरतु है । वैढक गणक ग्रंथ जानै ग्रह गणन पंथ,
और ठौर के प्रवीण पाइनि परतु है । करत कवित सार काव्य की कला अपार,
शोक सब लोकनि के मन क हरतु है। कहै मसीह भैया पंडिताई कहु कैसी,
दोहरा हमारे देस छोहरा करतु है ॥ १॥ समस्या-नैन के झरोखे वीच झारखता सो कौन है । हरिसो सकेत करी राधिके विलोके मग,
असे आई बैठी सखी एक ही बिछौन है । राधे बोली सुनि खेल मोसु नैन बाद जोवै,
अनिमेप दो मैं हारी साई दासी हौन है ।। एते सखी पीछे हरे हरे आए हरी अति ही,
अति ही निकट है के तकै गहि मौन है । बोली सखी राधे सुनि मोसु कहि साच वाच,
नैन के झरोखे वीचि झाखता सो कौन है ||१||