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________________ ३०८ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली निसि मौन सो बठो तके केहै ऊघत सूनी ही सोर कर सहरों। न लहै गुण के को कहै ध्रमसी जगि आज लबारिन को पहुरौ ।। समस्या-दोहरा हमारे देस छोहरा करतु है । सवैया इल्तीसा एक एक ते विसेप पंडित वसै असप, रात दिन ज्ञान ही की वात कुं धरतु है । वैढक गणक ग्रंथ जानै ग्रह गणन पंथ, और ठौर के प्रवीण पाइनि परतु है । करत कवित सार काव्य की कला अपार, शोक सब लोकनि के मन क हरतु है। कहै मसीह भैया पंडिताई कहु कैसी, दोहरा हमारे देस छोहरा करतु है ॥ १॥ समस्या-नैन के झरोखे वीच झारखता सो कौन है । हरिसो सकेत करी राधिके विलोके मग, असे आई बैठी सखी एक ही बिछौन है । राधे बोली सुनि खेल मोसु नैन बाद जोवै, अनिमेप दो मैं हारी साई दासी हौन है ।। एते सखी पीछे हरे हरे आए हरी अति ही, अति ही निकट है के तकै गहि मौन है । बोली सखी राधे सुनि मोसु कहि साच वाच, नैन के झरोखे वीचि झाखता सो कौन है ||१||
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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