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शास्त्रीय विचार स्तवन संग्रह
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सप्ताक्षरी कवित्तगिही केकि के अगिह केकि के गिह गिहि कुकाहि । केकि को क ख ग घूक हहा हूहू खगहु क्कहि । के गहि गह गहि कोह खे गगा है खग खगाहि । के कुग्गह गह गहे अग अग्धै अगि अग्गहि । के हक्क अहक्क अगाह गहै गेह खेह कंकह गुहा । कहि कुक्ख खूह खुह अग्गि की कहुं केही अक्कह कहा ? अकुह विसर्जनीया ना कंठ इणे हीज साते अक्षरे कवित्त छै पेट नाट ऊपरा कह्यौ छ।
गूढ रूप आशीर्वाद सवैया धोरी के धनी के नीके हार को अहार सुत,
ताही के नगर गयो जाके दस सीस है ! मब लोक जाके सुत ताके नाम ताकी सुता
वाजी मुख भूपन बैठी निसि दीस है ।। राजा लावै रैंत लार ताकी साखा की सिंगार
आगे धाई धरी देखि उपजी जगीस है। भाह की धुजावे रैन तिन्हें पूछयो जोङ वेन
ताकी नाम चातुरी सा मेरी भी आसीस है ||१|
नुसते इक बोल कयौ न गिणे कोऊ धूनि बक तो गुणी गहरो । हलकें कहै बात न पावत न्याउ जबाब के जोर खडो बहरौ ।।