________________
२३६
गुरुदेव स्तवनादि वाकै सब सोल कला, सो भी दिन रैन छीन,
__याकै तो छतीस दृन, दून रूप रेख हे । धर्मसी सुबुद्धि धार गुणसौं विचार यार,
___ चंदसु तो जिणचद केते ही विशेष हैं ॥१॥ जैसे राजहसनिसौं राजै मानसर राज,
जैसे विंध भूधर विराजै गजराज सौं। जैसैं सुर राजि सुजु सोभ सुरराज सार्जें,
जैसैं सिंधुराज राजै सिन्धुनि के साज सौं॥ जैसे तार हरनि के वृन्द सौं विराजैं चंद,
जैसे गिरराज राजै नद वन राज सौं जैसे धर्मशील सौं विराजे गच्छराज तैसे,
राजै जिनचदसूरि सघ के समाज सौं ॥२॥ ___ तैसो ही अनूप रूप भावें आइ वदै भूप,
चातुरी वचन कला पूरी पडिताइ है। तैसो ही अडिग ध्यान आगम अगम ज्ञान,
साचो मूरि मंत्र को विधान सुखदाइ है ।। तैसी है अमल बुद्धि, साची है वचन सिद्धि,
तैसों गुण जान तैसी सोभा हु सवाइ है। और ठौर गुण एक तो मे सब ही विवेक,
- ऐसी, जिनचन्दसूरि तेरी अधिकाइ हैं ॥३॥ जिणचंद यतीश्वर वदन को,
नर नारि नरेसर आवत है।