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औपदेशिक पद
( ८ )
राग-प्रभाति जाति प्रणमीजे , गुरु देव प्रभाते,
बोलें मत दिन विकथा वाते । १।प्र। मूझे मत त्यु पच पच मिथ्याते,
समकित धर गुण पंच संघाते । २। प्र० । दिल शुद्ध धरि धर्म-शील दयाते,
सहु विध थाय सदा सुख साते । ३ । प्र० ।
( ६ )
राग जैतश्री सब मे अधिकी रे याकी जैतसिरि,
काहू और न होड करि । १। स०। आठौ अंग योग की ओटें
उद्धते मार्यो मोह अरी । स० । अंतर वहि तपतेज आरोवे,
जोर मदन की फौज जरी । २। स०। ज्ञानी हनी. ज्ञान गुरजा सु,
ममता पुरजा होइ परी । स०। अनुभौ बलसु भव दल भागे,
फाल फते करि फौज फिरी । ३ । स०। श्री धर्मसी आतम नृप दाता,
देत लदाना मुक्तिपुरी । ४ । स० ।